बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।
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बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं॥ एहि धनु पर ममता केहि हेतू।
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