"बहु धनुही तोरी लरिकाई" यह किसने कहा और क्यों?
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Answers
बहु धनुही तोरी लरिकाई, अस रिषि कबहूं न कीन गोसाई।
➲ यह पंक्तियां ‘लक्ष्मण’ ने ‘परशुराम’ से कही हैं।
व्याख्या :
⏩ उन्होंने यह पंक्तियां उन्होंने परशुराम से तब कहीं जब सीता स्वयंवर में श्री राम ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया था। परशुराम जो कि यह धनुष राजा जनक के पास धरोहर के रूप में रख गए थे, वह धनुष टूटने का समाचार पाकर तुरंत स्वयंवर स्थल पर पहुंचकर क्रोध करने लगे और लक्ष्मण से उनका वाद-विवाद होने पर लक्ष्मण ने परशुराम से यह बात कही कि हमने बचपन में बहुत से धनुष तोड़े हैं, ऐसे में इस धनुष के टूट जाने पर आप इतना विवाद क्यों कर रहे हैं।
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"बहु धनुही तोरी लरिकाई" यह किसने कहा और क्यों?
"बहु धनुही तोरी लरिकाई" यह बात लक्ष्मण जी ने परशुराम जी से कही थी , क्योंकि राम जी ने धनुष तोड़ दिया था , इसलिए परशुराम जी बहुत क्रोधित थे |
व्याख्या :
सभा में धनुष टूटने की बात पर , परशुराम जी के गुस्से में की गई बाते सुनकर , लक्ष्मण हँसने लगे | लक्ष्मण ही कहने लगे , बचपन में खेल -खेल में मैंने बहुत धनुहियां तोड़ डाली है , तब आपको गुस्सा नहीं आया , इस धनुष में कौन सी बात है , जिसके लिए आप इतना गुस्सा कर रहे है | इस धनुष में ऐसी क्या खास बात है , जिसके कारण आपको इससे इतना प्रेम है |