भीड़ भरी बस पर फीचर लेखन
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रविवार का दिन था । मैंने शाहदरा में रहने वाले मेरे मित्र अजय से मिलने जाने का निर्णय लिया । यह जगह मेरे निवास स्थल अशोक विहार से बहुत दूर है । ऑटो रिका पर जाने पर सौ रुपये लग सकते थे ।
अंत: मैंने दस रुपये में वहाँ तक पहुँचने के लिये डी.टी.सी. की बस द्वारा यह दूरी तय करने का कार्यक्रम बनाया जब मैं बस अड्डे पर पहुँचा तो वहाँ बहुत भीड़ जमा थी । जब बस आयी सब उसके दरवाजे पर टूट पड़े । बस में पहले ही जरूरत से अधिक लोग भरे हुये थे । कुछ यात्री दरवाजे पर लटक रहे थे ।
कुछ सौभाग्यशाली लोगों को अपना पैर रखने की जगह तो मिल गयी बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दिया गया । अन्दर जाने का प्रयत्न करने की आवश्यकता ही नहीं थी । हमारा यह काम हमारे बाद चढ़ने वाले पूरे जोर से धक्का मार कर रहे थे । रविवार था इसलिये प्रत्येक व्यक्ति 25 रुपये के पूरे दिन के पास से अधिकतम लाभ प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था ।
प्राइवेट बसों का उस दिन अवकाश था । भीड़ हर क्षण बढ़ रही थी । जैसे ही मैं बस में चढ़ा साथी यात्रियों ने अन्दर धकेल दिया । बस में केवल 50 सीटें थी लेकिन सौ से अधिक लोग उसमें सवार थे । खड़े हुये यात्रियों की संख्या बैठे हुये यात्रियों की संख्या से कम नहीं थी । आठ सीटें जो महिलाओं के लिये आरक्षित होती हैं वह भी युवकों द्वारा हथिया ली गयी थीं ।
कुछ वृद्ध महिलायें खड़ी थीं एवं लडुकों से सीट खाली करने की विनय कर रही थीं । लड़की ने अपने मुँह बाहर की ओर फेर लिये जैसे वह बाहर का दृश्य देखने में अत्यन्त व्यस्त हैं । बाहर जाने के लिये दरवाजे तक पहुँचना आसान नहीं था । सकर्स के शो की तरह यहाँ भी रस्सी पर चलने की तरह तंग जगह से तेजी से निकलना था ।
मेरी मंज्जिल करीब आ रही थी । मैंने आगे बढ़ने का प्रयत्न किया । मुझे लगा कोई मेरी जेब पर हाथ मार रहा है । मैंने उसे पकड़ने का प्रयास किया मगर वह जा चुका था और मेरा पर्स भी । मैंने बेवकूफों की तरह इधर-उधर देखा न केवल पैसे बल्कि मेरी टिकट भी उसी पर्स में थी सब चला गया ।
मैं जोर से चिल्लाया एवं चालक से बस पुलिस थाने ले चलने को कहा । किन्तु उसने मेरा स्टाप आने तक बस चलाना जारी रखा । उसने मुझे कहा कि मुझे कछ नहीं मिलेगा क्योंकि जेबकतरा तो तत्काल बस से उतर गया होगा । डी.टी. सी की बस में यात्रा करके मैंने जीवन का एक नवीन अनुभव प्राप्त किया ।