भावी नागरिक निर्माण करने की जिम्मेदारी शिक्षक के ऊपर है। वह उसके शारीरिक, मानसिक तथा
नैतिक विकास का जनक है: जिस पर व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र निर्भर है। शिक्षक के हो द्वारा कोई योग्य
सैनिक बन सकता है। आज शिक्षक ने सैनिक धाराओं में क्रांति पैदा कर दी है। हमारे अहिंसक आंदोलन
ने दुनिया को दिखा दिया है कि शिक्षक सैनिकों से कहीं श्रेष्ठ है। इसे बनावटी शस्त्रों की जरूरत नहीं
है। इसका आत्मिक बल सब शस्त्रों से बड़ा है।
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Answer:भावी नागरिक निर्माण करने की जिम्मेदारी शिक्षक के ऊपर है। वह उसके शारीरिक, मानसिक तथा
नैतिक विकास का जनक है: जिस पर व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र निर्भर है। शिक्षक के हो द्वारा कोई योग्य
सैनिक बन सकता है। आज शिक्षक ने सैनिक धाराओं में क्रांति पैदा कर दी है। हमारे अहिंसक आंदोलन
ने दुनिया को दिखा दिया है कि शिक्षक सैनिकों से कहीं श्रेष्ठ है। इसे बनावटी शस्त्रों की जरूरत नहीं
है। इसका आत्मिक बल सब शस्त्रों से बड़ा है।
व्याख्या:
वह उसके शारीरिक, मानसिक तथानैतिक विकास का जनक है: जिस पर व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र निर्भर है। शिक्षक के हो द्वारा कोई योग्य सैनिक बन सकता है।शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी देश या समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम् भूमिका होती है, कहा जाए तो शिक्षक समाज का आइना होता है। हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि आचार्य देवो भवः यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरुप दिया जाता है। शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य का जन्म शिक्षा के व्यैक्तिक उद्देश्य की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है। इस उद्देश्य के समर्थक व्यक्ति की अपेक्षा समाज को ऊँचा मानते हैं। उनका अटल विश्वास है कि व्यक्ति स्वाभाव से सामाजिक प्राणी है। यदि उसे समाज से प्रथक कर दिया जाये।
निष्कर्ष:
शिक्षा नागरिकता के लिए “ तथा “शिक्षा सामाजिक कुशलता के लिए” होनी चाहिये। इस उद्देश्य के द्वारा प्रदान की हुई शिक्षा बालकों को अपने कर्तव्यों तथा अधिकारों के प्रति जागरूक सामाजिक दोनों प्रकार की उन्नति सम्भव हैं।
नैतिक विकास का जनक है: जिस पर व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र निर्भर है। शिक्षक के हो द्वारा कोई योग्य
सैनिक बन सकता है। आज शिक्षक ने सैनिक धाराओं में क्रांति पैदा कर दी है। हमारे अहिंसक आंदोलन
ने दुनिया को दिखा दिया है कि शिक्षक सैनिकों से कहीं श्रेष्ठ है। इसे बनावटी शस्त्रों की जरूरत नहीं
है। इसका आत्मिक बल सब शस्त्रों से बड़ा है।
व्याख्या:
वह उसके शारीरिक, मानसिक तथानैतिक विकास का जनक है: जिस पर व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र निर्भर है। शिक्षक के हो द्वारा कोई योग्य सैनिक बन सकता है।शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी देश या समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम् भूमिका होती है, कहा जाए तो शिक्षक समाज का आइना होता है। हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि आचार्य देवो भवः यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरुप दिया जाता है। शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य का जन्म शिक्षा के व्यैक्तिक उद्देश्य की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है। इस उद्देश्य के समर्थक व्यक्ति की अपेक्षा समाज को ऊँचा मानते हैं। उनका अटल विश्वास है कि व्यक्ति स्वाभाव से सामाजिक प्राणी है। यदि उसे समाज से प्रथक कर दिया जाये।
निष्कर्ष:
शिक्षा नागरिकता के लिए “ तथा “शिक्षा सामाजिक कुशलता के लिए” होनी चाहिये। इस उद्देश्य के द्वारा प्रदान की हुई शिक्षा बालकों को अपने कर्तव्यों तथा अधिकारों के प्रति जागरूक सामाजिक दोनों प्रकार की उन्नति सम्भव हैं।
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