भाव पल्लवन के नियम बताओ
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भाव पल्लवन का अर्थ है- 'किसी भाव का विस्तार करना'। इसमें किसी उक्ति, वाक्य, सूक्ति, कहावत, लोकोक्ति आदि के अर्थ को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है। विस्तार की आवश्यकता तभी होती है, जब मूल भाव संक्षिप्त, सघन या जटिल हो। भाषा के प्रयोग में कई बार ऐसी स्थितियां आती है। जब हमें किसी उक्ति में निहित भावों को स्पष्ट करना पड़ता है। इसी को भाव-पल्लवन कहते है।
हम अपने भाषा व्यवहार में कई सूत्र वाक्य सूक्तियाँ, कहावतें, लोकोक्तियाँ आदि बोलते और सुनते रहते है। उदाहरण के लिये,
स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निधाना।।
परहित सरिस धरम नहीं भाई।
इन सूक्तियों ओर कहावतों में भाव या विचार गठे और एक दूसरे के साथ बंधे रहते है। इन विचारों या भावों के समझने के लिए इनका विस्तार से विवेचन करना होता है ताकि उस सूत्र, वाक्य, सूक्ति या कहावत में छिपे गहरे अर्थ को स्पष्ट किया जा सके।
हमारी कहावतें या लोकोक्तियाँ हमारे समाज के अनुभव को अपने में समेटे होती हैं। ये लोकोक्तियां वस्तुतः पूरे समाज के विचारों का सार प्रस्तुत करती हैं। इसी प्रकार कई विचारक, विद्वान या संत-महात्मा ऐसे सूत्र वाक्य प्रस्तुत करते हैं, जिनमें वे कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात कह जाते हैं। इस बात को समझाने और समझाने के लिए हमें सोचना भी पड़ता है और उसका विस्तार भी करना पड़ता है। इसी को भाव-पल्लवन कहते हैं। वास्तव में भाषा व्यवहार में निपुण होने के लिए हमें भाव पल्लवन का अभ्यास करना आवश्यक है, जिससे हम ऐसी अभिव्यक्तियों में निहित भाव का इस प्रकार विस्तार करें कि सुनने वाले या पढ़ने वाले व्यक्ति को अपनी बात समझा सकेंं।
हम अपने भाषा व्यवहार में कई सूत्र वाक्य सूक्तियाँ, कहावतें, लोकोक्तियाँ आदि बोलते और सुनते रहते है। उदाहरण के लिये,
स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निधाना।।
परहित सरिस धरम नहीं भाई।
इन सूक्तियों ओर कहावतों में भाव या विचार गठे और एक दूसरे के साथ बंधे रहते है। इन विचारों या भावों के समझने के लिए इनका विस्तार से विवेचन करना होता है ताकि उस सूत्र, वाक्य, सूक्ति या कहावत में छिपे गहरे अर्थ को स्पष्ट किया जा सके।
हमारी कहावतें या लोकोक्तियाँ हमारे समाज के अनुभव को अपने में समेटे होती हैं। ये लोकोक्तियां वस्तुतः पूरे समाज के विचारों का सार प्रस्तुत करती हैं। इसी प्रकार कई विचारक, विद्वान या संत-महात्मा ऐसे सूत्र वाक्य प्रस्तुत करते हैं, जिनमें वे कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात कह जाते हैं। इस बात को समझाने और समझाने के लिए हमें सोचना भी पड़ता है और उसका विस्तार भी करना पड़ता है। इसी को भाव-पल्लवन कहते हैं। वास्तव में भाषा व्यवहार में निपुण होने के लिए हमें भाव पल्लवन का अभ्यास करना आवश्यक है, जिससे हम ऐसी अभिव्यक्तियों में निहित भाव का इस प्रकार विस्तार करें कि सुनने वाले या पढ़ने वाले व्यक्ति को अपनी बात समझा सकेंं।
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भाव पल्लवन का अर्थ है किसी भाव का विस्तार करना इसमें किसी लोक अत्याधिक एयर का विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है विस्तार की आवश्यकता तभी होती है अपने भाषा व्यवहार में कई सूत्र वाक्य कहावतें लोकोक्तियां आदि बोलते हैं और सुनते रहते हैं उदाहरण के लिए स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है यहां सुमित संपति नाना जहां कुमति तहं बिपति निदाना में भाव है
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