भावार्थ बताए:
क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह,
है क्या ही निस्तब्ध निशा।
है स्वच्छंद-सुमंद गंध वह
निरानंद है कौन दिशा?
बंद नहीं, अब भी चलते हैं।
नियति नटी के कार्य-कलाप।
पर कितने एकांत भाव से
कितने शांत और चुपचाप।।।
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भावार्थ —
यह पंक्तियाँ चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता से ली गई है | यह कविता मैथिली शरण गुप्त’ द्वारा लिखी गई है|
इन पंक्तियों में पंचवटी के चारों और प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है| यहाँ पर स्वच्छ और निर्मल चांदनी है। चारों तरह वातावरण शांत सा महसूस हो रहा है और अच्छी खुशबू दिशाओं में महक रही है| पंचवटी में चारों और स्वच्छ वातावरण फैला हुआ है| सब जगह एकांत और चुप्पी है, फिर भी सब अपना कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। यहाँ पर कितनी शांति अच्छी खुशबू चारों दिशाओं में महक रही है।
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नलिखित पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए
चारु चंद्र ........... झोंकों से।
| क्या ही स्वच्छ .......... शांत और चुपच
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