भावार्थ लिखिका
उन्नति पूरी है तबहि घर उन्नति होय]
निज शरीर उन्नति किए,रहत मूढ सब कोय।।
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खुद के जी निजी स्वार्थ से उठकर हमें घर याने कि समाज की उन्नति के ऊपर अधिक काम करना चाहिए | उपर्युक्त पंक्तियों का यही सारांश में भावार्थ है |
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