भावार्थ पूरयित्वा पुनः पूर्ण भावार्थं लिखत-
"चक्रवत्परिवर्तन्ते दुःखानि च सुखानि च।"
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दुःख और सुख चक्र की भांति परिवर्तित होता रहता है।
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