भावार्थ्रामायणम् कस्यां भाषायाम् अस्ति ?
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अयुक्त पुरुषमें अर्थात् जिसका अन्तःकरण समाहित नहीं है ऐसे पुरुषमें आत्मस्वरूपविषयक बुद्धि नहीं होती अर्थात् नहीं रहती और उस अयुक्त पुरुषमें भावना अर्थात् आत्मज्ञानमें प्रगाढ प्रवेश अतिशय प्रीति भी नहीं होती।
तथा भावना न करनेवालेको अर्थात् आत्मज्ञानके साधनमें प्रीतिपूर्वक संलग्न न होनेवालेको शान्ति अर्थात् उपशमता भी नहीं मिलती।
शान्तिरहित पुरुषको भला सुख कहाँ क्योंकि विषयसेवनसम्बन्धी तृष्णासे जो इन्द्रियोंका निवृत्त होना है वही सुख है विषयसम्बन्धी तृष्णा कदापि सुख नहीं है वह तो दुःख ही है।
अभिप्राय यह कि तृष्णाके रहते हुए तो सुखकी गन्धमात्र भी नहीं मिलती।
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