भाव स्पष्ट कीजिए
जेब टटोली कोड़ी न पाई।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान।।
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भाव यह है कवयित्री इस संसार में आकर सांसारिकता में उलझकर रह गयी और जब अंत समय आया और जेब टटोली तो कुछ भी हासिल न हुआ। लेखिका ने प्रभु के पास पहुँचने के लिए कठिन साधना चुनी परंतु उससे इस राह से ईश्वर नही मिला। अब उसे चिंता सता रही है कि भवसागर पार करानेवाले मांझी अर्थात् ईश्वर को उतराई के रूप में क्या देगी।
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