भाव स्पष्ट किजिए:- नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहुं। पनि रिस रोकी दुसह दुःख सहहु।।
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इतने पर भी संतोष न हुआ हो तो फिर कुछ कह डालिए। क्रोध रोककर असह्य दुःख मत सहिए।
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