Hindi, asked by Surajvi, 1 year ago

भाव स्पष्ट कीजिए
तुम्हारे हँसने की धुन में नदियाँ निनाद करती ही जा रही हैं

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Answered by shailajavyas
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Answer:

                            जयशंकर प्रसाद की इन पंक्तियों में कवि ने परमपिता परमेश्वर की उपस्थिति का बखान करते हुए उसके सर्वव्यापी सौंदर्य और व्यापकता का गुणगान किया है | कवि को प्रकृति के प्रत्येक उपादान में ईश्वर का अनंत प्रसाद दृष्टिगोचर होता है | जहाँ चंद्रकिरण का शुभ्र निर्मल प्रकाश उसके(प्रभु के) मधुर स्मित हास्य को व्यक्त करत़ा है | वही उसकी (प्रभु की) कृपामयी स्नेहिल मधुर हंसी नदियों के कल-कल निनाद (आवाज़) को व्यक्त करती है ; अर्थात (परमेश्वर की )हंसी की ध्वनि नदियों के प्रवाह में सुनी जा सकती है । जीवमात्र पर कृपा करने वाला ईश्वर ही मनुष्य के समस्त मनोरथ पूर्ण करता है |   वस्तुत: प्रकृति के प्रत्येक विलास में ईश्वर का ऐश्वर्य दृष्टिगोचर होता है | कवि ने अपनी महत दृष्टि द्वारा इसी के दर्शन किये है |

Answered by nomanqadro
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Answer:

El Al is well all El do aap do so aap do do

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