भाव वाच्य का क्या अर्थ होता है
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भाववाच्य संज्ञा पुं० [सं०] व्याकरण में क्रिया का वह रुप जिससे यह जाना जाय कि वाक्य का उद्देश्य उस क्रिया का कर्ता या कर्म कोई नहीं है, केवल कोई भाव है ।
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भाववाच्य क्रिया के उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो। दूसरे शब्दों में- क्रिया के जिस रूप में न तो कर्ता की प्रधानता हो न कर्म की, बल्कि क्रिया का भाव ही प्रधान हो, वहाँ भाववाच्य होता है।
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