भगत अपने माथे पर कैसा तिलक लगाते थे पहला त्रिपुंड दूसरा रामानंदी तीसरा वैरागी चौथा धार्मिक
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क्यों लगाते हैं माथे पर तिलक
By:manav
क्यों लगाते हैं माथे पर तिलक
हिन्दूस्तान के अलावा शायद ही और कहीं माथे पर तिलक लगाने की परम्परा होगी, इस प्राचीन रिवाज व शास्त्रानुसार माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में भगवान श्री विष्णुजी का निवास होता है, और तिलक भी ठीक इसी स्थान पर इस भाव से लगाया जाता है कि हमारा मस्तिष्क ऊंचा रहे ।
हमारी संस्कृति में किसी भी पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि का शुभारंभ श्रीगणेश पूजा से आरंभ होता है । उसी प्रकार बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना आरंभ नहीं होती । धर्म मान्यतानुसार सूने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है । तिलक चंदन, रोली, कुंकुम, सिंदूर तथा भस्म का लगाया जाता है । तंत्रशास्त्र में तिलक की अनेक क्रिया-विधियां विभिन्न कार्यों की सफलता के लिए बताई गई हैं । ***** परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक या कार्य की महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है ।
सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार भी अनामिका तथा अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं । अनामिका अंगुली से तिलक धारण करने पर शांति मिलती है । मघ्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है । अंगूठा प्रभाव और ख्याति तथा आरोग्य प्रदान कराता है । इसीलिए राजतिलक अथवा विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परंपरा रही है ।
माथे में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है उस भाग को आज्ञाचक्र कहा जाता है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर इसके उन्मीलन की दिशा में किया गया प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित उत्तेजना मिलती रहती है ।
तन्त्र शास्त्र में उल्लेख आता हैं कि माथे को इष्ट देव का प्रतीक मानकर इष्ट देव का चिंतन मन मस्तिष्क में सदैव बना रहे इस मनोभूमि के साथ तिलक लगाया जाता हैं, ताकि सारे शरीर में फैली हुई चेतना धीरे - धीरे आज्ञाचक्र पर एकत्रित होती रहे, और तिलक या टीके के माध्यम से आज्ञाचक्र पर एकत्रित होने से तीसरे नेत्र के जागृत होने पर हम परामानसिक जगत में प्रवेश कर सकें ।
माथे पर लगा हुआ तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है । तिलक केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं है बल्कि इसके कई वैज्ञानिक कारण भी हैं । हिंदू धर्म में साधु, संतों के जितने पंथ है, संप्रदाय हैं वे सब अपने अलग-अलग प्रकार के तिलक लगाते हैं ।
धर्म, शास्त्र कहते है कि तिलक के बिना कोई भी सत्कर्म सफल नही हो पाते । तिलक बैठकर लगाना चाहिये । मिट्टी, चन्दन एवं भस्म आदि के तिलक को विद्वान या अन्य किसी के द्वारा लगाना चाहिये, लेकिन भगवान पर चढ़ाने से बचे हुए चन्दन को ही लगाना चाहिये । अगर दोपहर से पहले भस्म का टीका तिलक लगाया जाता है तो उसमें जल मिलाकर ही लगाना चाहिये । दोपहर के बाद बिना जल मिलाये लगाना चाहिए । सुबह या दोपहर में चन्दन, अष्टगंध या कुमकुम का तिलक लगाने से मन मस्तिष्क में शांति बनी रहेगी ।
mathe par tilak
हिन्दू धर्म में स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं । लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है । तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है । तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है । देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है । तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है ।
तिलक के प्रकार
सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों में अलग-अलग तिलक लगाये जाते हैं ।
1- शैव- शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है ।
2- शाक्त- शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं । सिंदूर उग्रता का प्रतीक है । यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है ।
3- वैष्णव- वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं । इनमें प्रमुख हैं- लालश्री तिलक-इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है ।
4- विष्णुस्वामी तिलक- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है । यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है ।
5- रामानंद तिलक- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है ।
6- श्यामश्री तिलक- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं । इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है ।
7- अन्य तिलक- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं । साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं ।
माथे पर इस प्रकार तिलक या टीका एक धार्मिक प्रक्रिया प्रतीत होते हुए भी उसमें विज्ञान और दर्शन का साथ-साथ समावेश है ।
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