भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोहित
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मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
जा के सिर मोर-मुकट, मेरो पति सोई
छांड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?
संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि- सींचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि मृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोही।
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भारत वंदना कविता में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का क्या कतन है
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