भगवान बुद्ध की शिक्षाओं पर प्रकाश डालिए संक्षिप्त में
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बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के 49 दिनों के बाद उनसे पढ़ाने के लिए अनुरोध किया गया था। इस अनुरोध के परिणामस्वरूप योग द्वारा बुद्ध ने धर्म के पहले चक्र को पढ़ाया था। इन शिक्षणों में चार आर्य सत्य और अन्य प्रवचन सूत्र शामिल थे जो हीनयान और महायान के प्रमुख श्रोत थे।
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भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया. उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया. उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है. उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की.
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बुद्ध की शिक्षाओं का सार है- शील, समाधि और प्रज्ञा। सर्व पाप से विरति ही 'शील' है। शिव में निरंतर निरति 'समाधि' है। इष्ट-अनिष्ट से परे समभाव में रति 'प्रज्ञा' है। भगवान बुद्ध प्रज्ञा व करुणा की साक्षात मूर्ति थे। ये दोनों ही गुण उनमें उत्कर्ष की पराकाष्ठा प्राप्त कर समरस होकर समाहित हो गये थे। महात्मा बुद्ध के अनुसार धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में सभी स्त्री एवं पुरुषों में समान योग्यता एवं अधिकार हैं। इतना ही नहीं, शिक्षा, चिकित्सा और आजीविका के क्षेत्र में भी वे समानता के पक्षधर थे। उनके अनुसार एक मानव का दूसरे मानव के साथ व्यवहार मानवता के आधार पर होना चाहिए, न कि जाति, वर्ण और लिंग आदि के आधार पर
द्ध के गुण भगवान बुद्ध में अनन्तानन्त गुण विद्यमान थे। उनके इन गुणों को चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है, यथा- काय गुण वाग-गुण चित्त गुण कर्म गुण काय-गुण