भगवान बुद्ध ने अपना घर बार क्यो त्याग दिया था ?
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कलम जिनके हाथ में थी उन्होंने सब कुछ अपने हिसाब से लिखा. हम उनका लिखा इतिहास ही अब तक पढ़ते रहे हैं. उन्होंने लिखा और हमने पढ़ लिया. भारत के इतिहास में सबसे अधिक तोड़ने मरोड़ने का काम बुद्ध और उनकी परंपरा के साथ किया गया. बुद्ध को लेकर अनेक कहानियां गढ़ी गईं जिनके माध्यम से बुद्ध की श्रमण परम्परा न सिर्फ नष्ट की गई बल्कि इसके विपरीत बातें जनमानस में भरी गईं.
कहा जाता है कि सिद्धार्थ गौतम वृद्ध, रोगी और मृतक को देसखकर विचलित हो गए और एक दिन अपनी पत्नी और बेटे को रात्रि में सोता हुआ छोड़कर ज्ञान प्राप्ति हेतु निकल गए थे. सवाल उठता है कि सिद्धार्थ जैसा जागरूक व्यक्ति परिवार-विमुख कैसे हो सकता है ? हकीकत तो यह है कि वह परिवार के सदस्यों को धोखा देकर घर छोड़ ही नहीं सकते थे. इस तरह के विश्वासघात की अपेक्षा उनसे नहीं की जा सकती थी. कोई भी व्यक्ति, जो परिवार-विमुख है, वह समाज-विमुख भी होगा, ऐसा व्यक्ति समाज-उन्मुख नहीं हो सकता.
जिस समय सिद्धार्थ गौतम ने प्रव्रज्या ग्रहण की, अर्थात् गृह त्याग किया उस समय उनकी आयु 29 वर्ष की थी. यदि सिद्धार्थ ने वृद्ध, रोगी और मृतक को देखकर प्रव्रज्या ग्रहण की, तो यह कैसे हो सकता है कि 29 वर्ष की आयु तक सिद्धार्थ ने कभी किसी बूढ़े, रोगी तथा मृत व्यक्ति को देखा ही न हो? इस तरह की घटनाएँ रोज ही घटती रहती हैं और सिद्धार्थ ने भी 29 वर्ष की आयु होने से पहले भी इन्हें देखा ही होगा. इस परम्परागत मान्यता को स्वीकार करना असम्भव है कि 29 वर्ष की आयु होने तक सिद्धार्थ ने एक भी बूढ़े, रोगी और मृत व्यक्ति को देखा ही नहीं था और 29 वर्ष की आयु होने पर ही प्रथम बार देखा. यह व्याख्या तर्क की कसौटी पर कसने पर खरी उतरती प्रतीत नहीं होती. त्रिपिटक के किसी भी ग्रन्थ में भी गृहत्याग के इस कथानक का कहीं उल्लेख तक नहीं है.
इस सम्बन्ध में बाबा साहब डॉ आंबेडकर का मत है कि शाक्यों और कोलियों में रोहिणी नदी के पानी को लेकर झगड़े होते थे. शाक्य संघ ने कोलियों के विरुद्ध युद्ध का प्रस्ताव पारित किया, जिसका सिद्धार्थ गौतम ने विरोध किया. शाक्य संघ, जो गणतंत्र था, के नियम के अनुसार बहुमत के विरुद्ध जाने पर दण्ड का प्रावधान था. संघ ने तीन विकल्प रखे-
1. सिद्धार्थ सेना में भर्ती होकर युद्ध में भाग लें,
2. मृत्यु दण्ड या देश छोड़कर जाने का दण्ड स्वीकार करें
3. अपने परिवार के लोगों का सामाजिक बहिष्कार और उनके खेतों की जब्ती के लिये राजी हों.
संघ का बहुमत सिद्धार्थ के विरुद्ध था. शांतिप्रिय और करुणामय होने के नाते सिद्धार्थ के लिये सेना में भर्ती होकर युद्ध में भाग लेने की बात को स्वीकार करना असम्भव था. अपने परिवार के सामाजिक बहिष्कार पर भी वह विचार नहीं कर सकते थे. अतः वे स्वेच्छा से देश त्याग कर जाने के लिये तैयार हो गये. सिद्धार्थ गौतम ने अपने पिता शुद्धोधन, अपनी माता प्रजापति गौतमी और पत्नी यशोधरा से सहमति और अनुमति लेकर घर से अभिनिष्क्रमण किया था. जब सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु छोड़ा तो अनोमा नदी तक जनता उनके पीछे-पीछे आई थी, जिसमें उनके पिता शुद्धोधन और उनकी माता प्रजापति गौतमी भी थे.