भगवान महावीर की कहानी। lord mahavir story in hindi
Answers
Answer:
Explanation:
जैनियों के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म ईसा से ५९९ वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को ५४३ वर्ष विक्रम पूर्व वैशाली गणतंत्र के लिच्छिवी वंश के महाराज श्री सिद्धार्थ और माता त्रिशला देवी के यहाँ हुआ। यह वह समय था जब भारत अंधविश्वासों के अंधकार में डूबने लगा था। पशुबलि और हिंसा का प्रचलन बढ़ रहा था। मिथ्याभिमान ने मानवीय मूल्यों को धूल धूसरित कर दिया था। परस्पर सहयोग और सौहार्द का स्थान ईर्ष्या और द्वेष ने ले लिया था। समन्वय की संस्कृति जातिवाद और वर्ण विभाजन के शिकंजे में कस रही थी। धर्म पुस्तकों में सिमट कर रह गया था।
धन लिप्सा और भौतिक भोग विलास के समक्ष त्याग और अपरिग्रह बौने हो गए थे। ऐसे अंधकारमय समय में क्षितिज पर अहिंसा, सत्य, त्याग और दया की जो किरणें भगवान महावीर के जन्म के फलस्वरूप फूटीं उन्होंने समाज का सारा अन्धेरा तिरोहित करके सभ्यता और संस्कृति के सूर्य की रक्षा की।
ज्ञान की खोज में महावीर नंगे पाँव एक स्थान से दूसरे स्थान विचरण करते हुए घनघोर तपस्या कर रहे थे. एक बार वह श्वेताम्बी नगरी जा रहे थे जिसका रास्ता एक घने जंगल से होकर गुजरता था, जिसमे चंडकौशिक नाम का एक भयंकर सर्प रहता था.उस सर्प के बारे में प्रसिद्द था कि वह सदा क्रोध में रहता था और उसके देखने मात्र से ही पक्षी, जानवर या इंसान मृत हो जाते थे.
जब महावीर उस जंगल की ओर बढे तो ग्रामीणों ने उन्हें चंडकौशिक के बारे में बताया और उधर न जाने का निवेदन किया.
पर अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महावीर तो भयरहित थे. उन्हें किसी के प्रति नफरत नहीं थी, और वे डर और नफरत को स्वयम के प्रति हिंसा मानते थे. उनके चेहरे पर एक तेज था और वे साक्षात करुणा की मूर्ती थे.
उन्होंने गाँव वालों को समझाया कि वे भयभीत न हों और जंगल में प्रवेश कर गए.
कुछ देर चलने के बाद जंगल की हरियाली क्षीण पड़ने लगी और भूमि बंजर नज़र आने लगी. वहां के पेड़ पौधे मृत हो चुके थे और जीवन का नामोनिशान नहीं था.
महावीर समझ गए कि वह चंडकौशिक के इलाके में आ चुके हैं. वे वहीँ रुक गए और ध्यान की मुद्रा में बैठ गए. महावीर के ह्रदय से प्रत्येक जीव के कल्याण के लिए शांति और करुणा बह रही थी.
महावीर की आहट सुन चंडकौशिक फौरन सतर्क हो गया और अपने बिल से बाहर निकला. महावीर को देखते ही वह क्रोध से लाल हो गया
और मन ही मन सोचा, “इस तुच्छ मनुष्य की यहाँ तक आने की हिम्मत कैसे हुई?”
वह महावीर की ओर अपना फेन ऊँचा कर फुंफकारने लगा…हिस्स…हिस्स..
पर महावीर तो शांतचित्त हो अपनी ध्यान मुद्रा में बैठे रहे और जरा भी विचलित नहीं हुए.
यह देख चंडकौशिक और भी क्रोधित हो गया और उनकी ओर बढ़ते हुए अपना फन हिलाने लगा.
महावीर अभी भी शांति से बैठे रहे और न भागने की कोशिश की ना भयभीत हुए. सर्प का क्रोध बढ़ता जा रहा था, उसने फ़ौरन अपना ज़हर महावीर के ऊपर उड़ेल दिया.
पर ये क्या महवीर तो अभी भी ध्यानमग्न थे, उस घटक विष का उनपर कोई असर नही हो रहा था.
चंडकौशिक को विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई मनुष्य उसके विष से बच सकता है, वह बिजली की गति से आगे बढ़ा और महवीर के अंगूठे में अपने दांत गड़ा दिए.
पर ये क्या महवीर अभी भी ध्यानमग्न थे और उनके अंगूठे से खून की जगह दूध बह रहा था.
अब महावीर ने अपनी आँखें खोली. वह शांत थे उनके मुख पर न कोई भय था ना ही क्रोध. वे चंडकौशिक की आँखों में देखते हुए बोले-