Hindi, asked by arinjain006, 4 months ago

भगवान राम कृष्ण से लेखक का क्या तात्पर्य है​


Anonymous: arin nice name

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1. कलाएं : कहते हैं कि भगवान राम 12 और कृष्ण 16 कलाओं में दक्ष थे। श्रीकृष्ण में जो अतिरिक्त कलाएं थीं वह उस युग के मान से जरूरी थीं।

2. मर्यादा पुरुषोत्तम : भगवान राम का जीवन मर्यादाओं को कभी तोड़ता नहीं हैं, जबकि कृष्ण समय आने पर इसका अनुसरण नहीं करते हैं। समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए मर्यादा जरूरी है। इसीलिए प्रभु श्रीराम को पुरुषों में उत्तम कहा गया है। राम का जीवन एक आदर्श है तो श्रीकृष्ण का जीवन एक उत्सव।

पुत्र के रूप में वनवास, भाई के रूप में पादुका त्याग और पति के रूप में सीता-वियोग। राम के दुःखों का न ओर, न छोर। लेकिन फिर भी वह मर्यादा को नहीं त्यागते हैं। सत्य के पथ पर अटल रहते हैं। राम अपने हर रूप में धर्मार्थ किसी न किसी सुख की बलि देते जाते हैं। वही शस्त्रधारी राम युद्ध-क्षेत्र में हर खोया सुख और पूर्ण सम्मान जीतने में समर्थ हैं।

कृष्ण बेहद राजनैतिक अवतार है वो कभी जरासंध के भय से युद्ध छोड़कर भाग जाते हैं और रणछोड़ कहलाते हैं। अर्थात वे परिस्थिति खराब होने पर मैदान को छोड़ना भी बुरा नहीं मानते। वे तरह समय परिस्थितियों के अनुसार ही अपना कार्य करते हैं यही एक राजनेता की सबसे बड़ी पहचान होती है। दूसरी ओर राम कोई राजनेता नहीं है। इसलिए उनके लिए समाज की मर्यादा और धर्म सम्मत आचरण ही सर्वोपरि है।

3. जीवन चरित्र : भगवान राम का जीवन ही गीता है या कहें कि धर्म सम्मत है जबकि कृष्ण का जीवन हमें शिक्षा देता है कि धर्म रक्षार्थ कई बार धर्म विरुद्ध आचरण भी करना होता है। दरअस्ल राम अपने जीवन दर्शन और व्यवहार में लौकिक मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते जबकि भगवान् कृष्ण के जीवन दर्शन और व्यवहार के बहुआयामी पक्ष हैं। राम की जीवन शैली आपको जीवन में बाधाओं से उबरने का मार्ग प्रशस्त करती है वहीं दूसरी ओर कृष्ण के जीवन से सुखी जीवन की प्रेरणा मिलती है।

4. दांपत्य जीवन : भगवान राम सामाजिक नियमों का पालन करते हुए सिर्फ एक प‍त्नी व्रत ही धारण करते हैं जबकि कृषण की 8 पत्नियां थीं। भगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी के वियोग में 2 वर्ष बिताए जबकि श्रीकृष्ण को कभी पत्नी का वियोग नहीं हुआ। कृष्ण की विवाह परिस्थितियां भी भिन्न थीं। परन्तु राम ने मुरली और रास माधुर्य नहीं दिखाया। एक पत्नी व्रत रखा। राम ने सबके प्रेम निवेदन ठुकरा दिए।

राम ने सीताजी से प्रेम किया उन्हीं से विवाह भी, परन्तु कृष्ण ने प्रेम तो राधा से किया लेकिन विवाह रुकमणी, सत्यभामा, जामवंती, कालिंदी, इत्यादि से किया। राम का विवाह विधिवत रीती रिवाज से संपन्न हुआ परन्तु कृष्ण ने समस्त विवाह गन्धर्व रीती से किया था। राम को देखा जाए तो गृहस्थी का सुख उन्हें नहीं के बराबर ही मिला। इसके ठीक विपरीत कृष्ण को सदैव ही गृहस्थी का सुख मिला। राम का नाम उनकी पत्नी के साथ लिया जाता है, जबकि कृष्ण का नाम उनकी प्रेमिका राधा के साथ लिया जाता है।

5. वन और महल : राम का जीवन बचपन से ही वन में वनवासी, ऋषि, आदिवासियों के बीच ही रहकर धर्म-कर्म के कार्यों के केंद्र में रहा। उन्होंने ऋषियों की रक्षार्थ असुरों का वध किया और वनवासियों को शिक्षित और संगठित किया। दूसरी ओर कृष्ण का सामना बचपन से ही राजाओं से होता रहा और वे राजनीति के केंद्र में रहे। राम महलों में पैदा हूए, पले और बाद में वनवास किया। कृष्ण बाद में महलों में गए, पैदा जेल में, पले गोकुल में। बंदीगृह में जन्में कृष्ण को शैशव में ही दांव-पेंच की विभीषिकाओं से जूझना पड़ता है। राम ने तो तपसी, वनवासी और उदासी का जीवन जी कर ही धर्म की रक्षा प्रारंभ की थी।

6. अर्थव्यवस्था को दिया विस्तार : भगवान श्रीकृष्ण और उनके 18 कुल के लोगों का कार्य गोपालन था। श्रीकृष्ण ने इस क्षेत्र को व्यवस्थीत कर इसका विस्तार किया जबकि भगवान राम ने चौदह वर्षीय वनवास काल में वन भूमि में कृषि का विस्तार किया, झोपड़ी या पर्णकुटी में रहना सिखाया और वनवासियों की भूख का समाधान किया। राम की कर्मभूमि पूर्वी और दक्षिण भारत है जबकि कृष्ण की कर्मभूमि उत्तर और पश्चिमी भारत है। पूर्वी और दक्षिणी भारत का मुख्य भोजन चावल है जबकि उत्तर और पश्चिमी भारत में दुग्ध उत्पाद प्रमुख भोजन है। कृष्ण ने गौपालन के माध्यम से नई अर्थव्यवस्था का विस्तार किया तो राम ने कृषि और वन की संपदा को अर्थव्यवस्था का आधार बनाया।

7. भक्त : सर्वशक्तिमान हनुमान, अंगद, लक्ष्मण, सुग्रीव, जाम्बवंत जैसे लोग राम के परम भक्त हैं। प्रभु श्रीराम की भक्ति को स्वयं शिव भी करते हैं। दूसरी ओर भगवान श्रीकृष्ण को भगवान समझने के लिए अर्जुन और बलराम को भी वक्त लगा तो दूसरे की बात करना व्यर्थ है। श्रीकृष्ण तो अपने भक्तों के भक्त थे। भक्ति के वे सारे मार्ग जो दूसरी ओर जाते हैं वे सभी घुमकर श्रीराम की ओर ही आते हैं। श्रीकृष्ण का सहयोग भी भगवान हनुमान ने दिया था, क्योंकि श्रीकृष्ण राम ही तो हैं।

राम अपने मित्रों को बिना मांगे ही उनकी वांछित वस्तु दे देते हैं जैसे कि सुग्रीव और विभीषण को उन्होंने बिना मांगे ही क्रमशः बालि और रावण का राज्य प्रदान कर दिया। इसके विपरीत कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा को उसके याचना करने के बाद ही वैभव प्रदान किया।

8. युद्ध नीति : भगवान राम की युद्ध नीति और कृष्‍ण की युद्ध नीति में बहुत अंतर है। राम ने अपने सम्मान की लड़ाई लड़ी जबकि श्रीकृष्ण की लड़ाई अपने लिए नहीं बल्कि धर्म रक्षार्थ थी। भगवान राम ने रावण को मारने के लिए कई तरह की कठिनाइयों का सामना किया। सेना के गठन और समुद्र पार करने से लेकर महाशक्तिशाली रावण का वध करने तक कई घटनाक्रमों का सामना करना पड़ा, लेकिन श्रीकृष्ण के पास खुद की सेना थी जिसे उन्होंने कौरव पक्ष को दे दी थी और खुद पांडवों की ओर से लड़े थे। भगवान राम को रावण के छल और उसकी मायावी शक्तियों का सामना करना पड़ा लेकिन भगवान कृष्ण को छल करने वालों के साथ छल का ही सहारा लेना पड़ा।

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