भगवन् हे निरन्तर दृढ़ संगठन हमारा।
छुटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा।।
बल, बुद्धि और विद्या, धन के अनेक साधन।
कर प्राप्त हम करेंगे निज देश को समर्पण।।
वह शक्ति दो कि भगवन्, निभ जाय प्रण हमारा ।। छूटे. ।।
कवी ईश्वर से क्या प्राथना करता है
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कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाये, वो हमेशा अपने देश की सेवा करते रहेगा, अपने बल, बुद्धि, विद्धा और धन द्वारा
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