bhagini nivedita par 400word me essay in hindi
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निवेदिता का अर्थ है--- ईश्वर को समर्पित।
भगिनी निवेदिता का बचपन का नाम मारगेट था।इनका जन्म 28 अक्टूबर, उत्तर आयरलैंड के टायरोन प्रान्त के डन्गानान नामक एक छोटे से उपनगर मे हुआ था।इनके पिता का नाम सेम्युअल नोबल तथा माता का नाम मेरी हैमिल्टन था।
1884 मे इन्होंने अपनी शिक्षा पूरी कर ली औऱ केसि्वक के एक स्कूल मे शिक्षिका के रुप मे कार्य करने लगी।
1893 मे स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो मे आयोजित सर्वधर्म सम्मेलन मे अपना प्रेरणादायक भाषण देकर करोड़ों अमेरिकन नागरिकों का दिल जीत लिया था।अपने प्रवचन के बीच स्वामी ने कहा-- आज संसार को ऐसे बीस पुरुषों तथा बीस महिलाओं की जरूरत है,जो जनसेवा के लिए अपने आप को समर्पित कर दे। स्वामी जी की प्रेरणा पर मारगेट ने अपना जीवन स्वामी जी को सौंप दिया।
28 जनवरी 1898 को मारगेट भारत आई।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने मारगेट का नाम बदलकर 'निवेदिता' रख दिया।
13जनवरी 1898को एक छोटी सी किराये की कुटिया मे निवेदिता ने एक छोटी सी पाठशाला आरंभ की।
वह घर-घर जाती तथा लोगो को अपने बच्चों ,विशेषकर लडकियों को शिक्षित करने के लिए समझाती।
मार्च 1899 मे कलकत्ता मे भयंकर प्लेग की बीमारी फैल गयी। पूरे30 दिनों तक वह सेवा कार्य मे जुटी रहीं।
1902 ,2जुलाई को विवेकानंद जी से उनकी बेलुर मठ मे अंतिम भेट हुई।
1903 मे उनकी पुस्तक 'वेब आफ इडिंयन लाइफ' का प्रकाशन हुआ।
1905मे बंगाल मे स्वदेशी आन्दोलन शुरू हो गया ।निवेदिता ने स्वतंत्रता आन्दोलन मे बढचढकर हिस्सा लिया।
1911, 13अक्टूबर को दार्जिलिंग मे इनका देहांत हो गया।
भगिनी निवेदिता का बचपन का नाम मारगेट था।इनका जन्म 28 अक्टूबर, उत्तर आयरलैंड के टायरोन प्रान्त के डन्गानान नामक एक छोटे से उपनगर मे हुआ था।इनके पिता का नाम सेम्युअल नोबल तथा माता का नाम मेरी हैमिल्टन था।
1884 मे इन्होंने अपनी शिक्षा पूरी कर ली औऱ केसि्वक के एक स्कूल मे शिक्षिका के रुप मे कार्य करने लगी।
1893 मे स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो मे आयोजित सर्वधर्म सम्मेलन मे अपना प्रेरणादायक भाषण देकर करोड़ों अमेरिकन नागरिकों का दिल जीत लिया था।अपने प्रवचन के बीच स्वामी ने कहा-- आज संसार को ऐसे बीस पुरुषों तथा बीस महिलाओं की जरूरत है,जो जनसेवा के लिए अपने आप को समर्पित कर दे। स्वामी जी की प्रेरणा पर मारगेट ने अपना जीवन स्वामी जी को सौंप दिया।
28 जनवरी 1898 को मारगेट भारत आई।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने मारगेट का नाम बदलकर 'निवेदिता' रख दिया।
13जनवरी 1898को एक छोटी सी किराये की कुटिया मे निवेदिता ने एक छोटी सी पाठशाला आरंभ की।
वह घर-घर जाती तथा लोगो को अपने बच्चों ,विशेषकर लडकियों को शिक्षित करने के लिए समझाती।
मार्च 1899 मे कलकत्ता मे भयंकर प्लेग की बीमारी फैल गयी। पूरे30 दिनों तक वह सेवा कार्य मे जुटी रहीं।
1902 ,2जुलाई को विवेकानंद जी से उनकी बेलुर मठ मे अंतिम भेट हुई।
1903 मे उनकी पुस्तक 'वेब आफ इडिंयन लाइफ' का प्रकाशन हुआ।
1905मे बंगाल मे स्वदेशी आन्दोलन शुरू हो गया ।निवेदिता ने स्वतंत्रता आन्दोलन मे बढचढकर हिस्सा लिया।
1911, 13अक्टूबर को दार्जिलिंग मे इनका देहांत हो गया।
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यकरकरखश्राश्रटृठललखख
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