bhagvan ki upasna sache hriday se ki jati hai na ki tat bat aur adambar se iss bhavna ko darshane vali kisi kavita ka sangrah kar kaksha me pradarshan kijiye
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' भगवान की सेवा सच्चे मन से किया जाता है,
न कि आडंबरों से । '
० इस भावना को दर्शाने के लिए एक दोहा
निम्नलिखित है :-
" पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़ !
घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए
संसार !! "
• प्रस्तुत पंक्ति ' कबीरदास के दोहे ' से
अवतरित है । अतः इनकी रचना ' कबीरदास '
ने किया है ।
• अर्थ :
----------
प्रस्तुत पंक्ति में कबीर कह रहे है कि , अगर
पत्थर को पूजने से हरि की प्राप्ति होती है ,
भगवान् अर्थात् प्रभु की प्राप्ति होती है , तो
फिर मैं सबसे बड़ा पत्थर अर्थात् पहाड़ की
पूजा करता । इससे मुझे भगवान् की प्राप्ति
जल्दी हो जाएगी । परन्तु ऐसा नहीं होता है ।
यह सब झूठे आडंबर मात्र है ।
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