History, asked by sahilchauhan1502, 11 months ago

bhagvan mahavir ki sikshayo ka mmukhya visya

Answers

Answered by parthkalia06
0

Answer:

अध्यात्म उनके शिक्षण का केंद्र था

Answered by drsushmadevi
0

Answer:

ध्यान मेरा पिता है, अहिंसा मेरी माता है, ब्रह्मचर्य मेरा भाई है, अनासक्ति मेरी बहन है, शांति मेरी पत्नी है और सत्य मेरा मित्र है। अगर ये सब मेरा परिवार है तो मैं अकेला कहाँ हूँ।’

महावीर कौन? कोई महाबली हो तो क्या उसे महावीर कहा जाए? कोई हिमालय पर्वत चढ़ता है तो क्या उसे महावीर कहा जाए? कोई चाँद पर गया हो तो क्या उसे महावीर कहा जाए? महावीर वह, जिसका मन अंदर स्थापित हो गया है। जिन्होंने मन पर काम किया है, वे जानते हैं कि मन को अंदर लगाना वीरता का कार्य है। जिन्होंने थोड़ा भी प्रयास किया है, वे जानते हैं कि मन को अंदर टिकाने की कोशिश की तो मन यहाँ-वहाँ भागने लगता है। जिस प्रकार जंगली हाथी को प्रशिक्षण देने के लिए भरपूर बल और समझ के अंकुश की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार मन को वश में करने के लिए अति वीर की आवश्यकता पड़ती है, जिसे ‘महावीर’ कहा गया है।

भगवान महावीर जैन धर्म के अंतिम (24) तीर्थंकर हुए। उनके पहले 23 तीर्थंकर और हुए जिनमें पहले तीर्थंकर भगवान ॠषभदेव थे।

तीर्थंकर का अर्थ है पुल, घाट, सेतु अथवा गुरु। जो सहारा हमें नदी का दूसरा किनारा दिलाता है, उसे तीर्थ कहा गया है। जो महामानव हमें वह सहारा देता है, उसे तीर्थंकर कहा गया है। तीर्थंकर का महत्त्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि इसके सहारे निर्बल से निर्बल इंसान भी बड़ी से बड़ी संसार रूपी नदी पार कर सकता है।

भगवान महावीर की सबसे उच्च शिक्षा है - ‘जियो और जीने दो।’ आज जब लोग इस शिक्षा का अर्थ निकालते हैं तो उसका सरलीकरण कर देते हैं, उसे ज़रूरत से ज़्यादा साधारण बना देते हैं। उन्हें लगता है कि इस शिक्षा का अर्थ मात्र यह है कि ‘हमें दूसरों के जीवन में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए।’ सिर्फ इतना करके उन्हें लगता है कि वे महावीर की शिक्षा का अनुकरण कर रहे हैं। जबकि यह तो इस शिक्षा का सबसे सीमित अर्थ है। लेकिन यदि लोग वास्तव में सिर्फ इस सीमित अर्थ को भी पूरी तरह अपने जीवन में उतारकर इसका अनुकरण करें तो संसार में चल रहे सारे युद्ध बंद हो जाएँगे।

‘जीयो’ का अर्थ है - हम कहाँ जी रहे हैं? क्या वर्तमान में जी रहे हैं? या भूतकाल की यादों में जी रहे हैं? कौन से काल, किस याददाश्त में जी रहे हैं? भविष्य की किस कल्पना में जी रहे हैं? अधिकांश लोग आज भी पुरानी यादों में या फिर भविष्य की कल्पनाओं में जीते हैं। अब आपको वर्तमान में जीना है, वर्धमान बनना है क्योंकि आप वर्धमान बनेंगे तो ही महावीर बन पाएँगे।

‘जीने दो’ का अर्थ है संतोष, तेज आनंद, देना, बाँटना। तेज आनंद यानी सुख और दुःख के परे का आनंद। जिसके पास यह आनंद है, वही दूसरों को जीने दे सकता है। दुःखी इंसान दूसरों को जीने नहीं देता। उसके पास नफरत की इतनी ताकत होती है कि वह दूसरों पर दबाव डालने की कोशिश करता है मगर उसे खुद भी नहीं मालूम कि वह दूसरों के जीने में बाधा क्यों डाल रहा है क्योंकि वह स्वयं तेज आनंद में नहीं है।

जो आनंद में है, जो आनंद जानता है, वही दूसरों को जीने दे सकता है। सही जीना उसे ही कहा गया है, जो न बुद्धि (मेमरी) में जीता है और न कल्पना में जीता है, सिर्फ सत्य में जीता है और सत्य वर्तमान है।

‘जीयो और जीने दो’, का अर्थ है कि ‘तुम्हें देखकर लोगों को पता चले कि ऐसे जीवन जीना है।’ जबकि वास्तव में आज के युग में लोग इस तरह से नहीं जीते हैं कि उन्हें देखकर दूसरों को ऐसा कोई एहसास हो। लोगों को यह अंदाज़ा भी नहीं है कि अपने जीवन के माध्यम से वे अन्य लोगों के सामने जीने का कैसा आदर्श रख रहे हैं। हालाँकि उन्हें तो यही लगता है कि ‘हम जी रहे हैं’, जबकि वास्तव में वे लोगों को जीने से दूर ले जा रहे हैं। यह एक तरह की हिंसा है, जो अज्ञान के कारण होती है। अज्ञान में इंसान प्रेम के नाम पर हिंसा करता है और उसे पता नहीं होता कि वह क्या कर रहा है। उसके तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन असल में यह एक तरह की हिंसा ही है।

भगवान महावीर के ज्ञान का सबसे मुख्य हिस्सा अहिंसा है। अपनी शिक्षाओं द्वारा उन्होंने लोगों को यह बताया कि हिंसा केवल शरीर से ही होती है, ऐसा नहीं है। शरीर से हिंसा यानी किसी को मारा गया, किसी की हत्या की गई तो यह शरीर द्वारा की गई हिंसा है। हिंसा तो पाँचों इंद्रियों द्वारा होती है। यदि वाणी से किसी को कटु शब्द कहे गए तो यह भी हिंसा है। अलग-अलग इंद्रियों से जो कर्म हमसे होते हैं, उनसे हिंसा हो सकती है। मन से भी हिंसा हो सकती है और यहाँ तक कि धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक तीनों तरह की हिंसाएँ भी हो सकती हैं।

0 प्रतिशत हिंसा, 100 प्रतिशत प्रेम के बराबर होती है। विश्व का हर इंसान चाहता है कि उसके परिवार के सदस्य भी प्रेम और अहिंसा के साथ जीएँ। अगर वाकई लोग प्रेम और अहिंसा को जीने का तरीका बना लें तो इसका असर न सिर्फ उनके घर के वातावरण पर बल्कि पूरे मुहल्ले (समाज) पर भी होगा। इंसान में बदले की भावना अधिक होती है, जो समाज में हिंसा को बढ़ाती है। भावनाओं का महत्त्व बताते हुए भगवान महावीर ने कहा, ‘खून से खून को साफ नहीं किया जा सकता।’ कई सालों से लोगों से खून से खून साफ करने की मूर्खता होते आई है। जैसे किसी ने मंदिर तोड़ा तो उसके बदले में मस्जिद पर हमला किया जाता है। लोगों को लगता है कि इस तरह बदला लेने से खून से खून साफ हो गया। मगर यह सही तरीका नहीं है। इस तरह से लोग एक-दूसरे के ही दुश्मन बन जाते हैं। यह हिंसा है और इस हिंसा की भावना को तेजप्रेम ही मिटा सकता है। अहिंसा की गहराई और तेजप्रेम की गहराई एक ही है।

Explanation:hope it helps u plz follow me and mark my answer as the brainliest

Similar questions