bhagwan ki upasana sachhe hridayse ki jati hai na ki taat baat aur aadambaron se is bhavana ka darshane vaali kisi kavitha ka sangrah kariye
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तुम्हें मैंने आह! संख्यातीत रूपों में किया है याद
सदा प्राणों में कहीं सुनता रहा हूं तुम्हारा संवाद
–बिना पूछे, सिद्धि कब?
इस इष्ट से होगा कहां साक्षातकौन-सी वह प्रात,
जिसमें खिल उठेगी क्लिन्न,
सूनी शिशिर-भीगी रात?चला हूं मैं;
मुझे संबल रहा केवल बोध–पग-पग आ रहा हूं पास;
रहा आतप-सा यही विश्वासस्नेह के मृदुघाम से गतिमान रखना निबिड़मेरे सांस और उसांस।
आह, संख्यातीत रूपों में तुम्हें किया है याद!
सदा प्राणों में कहीं सुनता रहा हूं तुम्हारा संवाद
–बिना पूछे, सिद्धि कब?
इस इष्ट से होगा कहां साक्षातकौन-सी वह प्रात,
जिसमें खिल उठेगी क्लिन्न,
सूनी शिशिर-भीगी रात?चला हूं मैं;
मुझे संबल रहा केवल बोध–पग-पग आ रहा हूं पास;
रहा आतप-सा यही विश्वासस्नेह के मृदुघाम से गतिमान रखना निबिड़मेरे सांस और उसांस।
आह, संख्यातीत रूपों में तुम्हें किया है याद!
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