Bhagy lekh kese log pdhte hai
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I can't understand the language of the question
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जिस व्यक्ति के मन में जैसे भाव होंगे उसके विचार भी वैसे ही प्रकट होते हैं। जो मन के भीतर चलता है वही बाहर दिखाई देता है। उसी प्रकार हम लोगों को जो देते हैं वही हमें मिलता है।
इस संसार में केवल सुकून की तलाश में घूमने वाले को कभी सुख-शांति नहीं मिल पाती। जिसके भाग्य में जो लिखा है उससे ज्यादा उसे इस संसार में कुछ भी नहीं मिलने वाला है। यह बात मुनिश्री पीयूष सागर के सुशिष्य मुनिश्री रत्न सागर ने श्रद्धालुओं के बीच कही।
मुनिश्री ने कहा कि कोई चाहे कितना भी प्रयास कर ले, भाग्य के लेख को नहीं बदला जा सकता। इस दौरान परमात्मा को याद करते हुए अगर किसी की मौत आ जाए तो वह उसकी सद्गति का कारण बन जाती है।
किसी दुखी को देखकर अगर मन में दया के भाव आए तो समझ लेना चाहिए कि वह जिन शासक का सच्चा उपासक है। इस भाव के चलते ही उसके कदम सम्यक दर्शन की ओर बढ़ रहे हैं।
रास्ते में चलते समय जिसे सेवा की जरूरत है उसे सेवा देकर ही आगे बढ़े। इससे काम बिगड़ते नहीं बल्कि बिगड़े हुए काम भी बन जाते हैं। यह भूल जाएं कि वह अमीर है, वह गरीब है, मैं सुंदर हूं, मैं विद्वान हूं। मन में कभी भी मैं की भावना आनी ही नहीं चाहिए। सभी को एक समान देखना चाहिए। ऐसे संस्कारों को अपने जीवन में किसी को धारण ही नहीं करना चाहिए।