Hindi, asked by Shaunak4129, 1 year ago

Bhagya bada ya purusharth par anuched

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Answered by mishranikhilkupb66p9
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आधुनिक युग प्रतिस्पर्धा का युग है । विज्ञान अथवा तकनीकी क्षेत्र में मनुष्य की अभूतपूर्व सफलताओं ने उसकी इच्छाओं व आकांक्षाओं को पंख प्रदान कर दिए हैं । परंतु बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें जीवन में वांछित वस्तुएँ प्राप्त होती हैं अथवा अपने जीवन से वे संतुष्ट होते हैं ।

हममें से प्राय: अधिकांश लोग जिन्हें मनवांछित वस्तुएँ प्राप्त नहीं होती हैं वे स्वयं की कमियों को देखने के स्थान पर अपने भाग्य को दोष देकर मुक्त हो जाते हैं । वास्तविक रूप में भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो स्वयं पर विश्वास करते हैं । वे जो अपने पुरुषार्थ के द्‌वारा अपनी कामनाओं की पूर्ति पर आस्था रखते हैं, वही व्यक्ति जीवन में सफलता के मार्ग पर अग्रसित होते हैं ।

भाग्य और पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक हैं । पुरुषार्थी अथवा कर्मवीर व्यक्ति जीवन में आने वाली बाधाओं व समस्याओं को सहजता से स्वीकार करते हैं । कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे विचलित नहीं होते हैं अपितु साहसपूर्वक उन कठिनाइयों का सामना करते हैं । जीवन संघर्ष में वे निरंतर विजय की ओर अग्रसित होते हैं और सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचते हैं।

”दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है,

मरता है जो, एक ही बार मरता है ।

तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे !

जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे !”



वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाग्यवादी होते हैं । ये व्यक्ति थोड़ी-सी सफलता अथवा खुशी मिलने पर अत्यंत खुश हो जाते हैं परंतु दूसरी ओर कठिनाइयों से बहुत ही शीघ्र विचलित हो जाते हैं । उनमें निराशा घर कर जाती है, फलत: सफलता सदैव उनसे दूर रहती है । इन परिस्थितियों में वे स्वयं की कमियों को खोजने तथा उनका हल ढूँढ़ने के स्थान पर अपने भाग्य को दोष देते हैं ।

इतिहास में ऐसे अनगिनत मनुष्यों की गाथाएँ हैं जिन्होंने अपने पुरुषार्थ के बल पर असाध्य को साध्य कर दिखाया है । महाबली पितामह भीष्म ने महाभारत के युद्‌ध में भगवान श्रीकृष्ण को भी शस्त्र उठाने पर विवश कर दिया ।

महात्मा गाँधी ने अपने सत्य और अहिंसा के बल पर देश को सैकड़ों वर्षों से चली आ रही अंग्रेजी दासता से मुक्ति दिलाई । लिंकन ने अपने पुरुषार्थ के बल पर ही युद्‌ध पर विजय पाई । ये सभी चमत्कार मनुष्य के पुरुषार्थ का ही परिणाम थे जिन्होंने अपने साहसिक कृत्यों से इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कराया ।

यदि हम विश्व के अग्रणी देशों का इतिहास जानने की कोशिश करें तो हम देखते हैं कि यहाँ के नागरिक अधिक स्वावलंबी हैं । वे भाग्य पर नहीं बल्कि पुरुषार्थ पर विश्वास रखते हैं । जापान भौगोलिक दृष्टि से बहुत ही छोटा देश है परंतु विकास की राह पर जिस तीव्रता से यह अग्रसर हुआ है वह अन्य विकासशील देशों के लिए अनुकरणीय है ।

अत: यदि हमें अपने देश, परिवार अथवा समाज को उन्नत बनाना है तो यह आवश्यक है कि देश के नवयुवक भाग्य पर नहीं अपितु अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करें एवं स्वावलंबी बनें । दूसरों पर आश्रित रहने की प्रवृत्ति को त्यागें । उनका दृढ़ निश्चय उन्हें कठिनाइयों को दूर करने हेतु बल प्रदान करेगा ।

गीता में श्रीकृष्ण ने सच ही कहा है :

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन: ।”

कर्म का मार्ग पुरुषार्थ का मार्ग है । धैर्यपूर्वक अपने कर्तव्य पथ पर अडिग रहना ही पुरुषार्थ को दर्शाता है । पुरुषार्थी व्यक्ति ही जीवन में यश अर्जित करता है । वह स्वयं को ही नहीं अपितु अपने परिवार, समाज तथा देश को गौरवान्वित करता है ।

पर कभी-कभी अपने भाग्य को स्वीकार कर लेना ही श्रेयस्कर है क्योंकि इस स्थिति में हमें संतोष और धैर्य का अनायास ही साथ मिल जाता है जो जीवन में उन्नति के लिए आवश्यक है ।
Answered by Bhardwaj123
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भाग्य और पुरुषार्थ का बड़ा विचित्र संबंध है कुछ लोग इस संबंध को मैं तेरी कह कर संतुष्ट होते हैं तो कुछ वैर विरोध एक और कहता है भाग्य और पुरुषार्थ का चोली दामन का साथ है तो दूसरा वर्क कहता है उनका दूर का भी रिश्ता नहीं है भाग्यवादी मानते हैं कि हमें जो मान अपमान लाभ हानि यश अपयश मिल रहा है भाग्य के कारण ही है कुछ लोग कहते हैं हमारे जीवन के समस्त उपलब्धियों को एक मात्र कारण हमारा पुरुषार्थ है वास्तव में सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम है तुषार को खींच लाता है बात भी ठीक है मान लीजिए कहा है

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