Bhai or bhan ke bich samvad
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सुहाना बचपन : सहज मनोविज्ञान
भाई का नन्हा-सा दिल पहली बार जब छोटी-सी गुलाबी-गुलाबी बहन को देखता है तब अनजानी, अजीब-सी अनुभूतियों से भर उठता है। थोड़ी-सी जिम्मेदारी, थोड़ी-सी चिंता, थोड़ा-सा प्यार, थोड़ी-सी खुशी, थोड़ी-सी जलन, थोड़ा-सा अधिकार ऐसी ही मिलीजुली भावनाओं के साथ भाई-बहन का बचपन गुलजार होता है।
मनोविज्ञान कहता है, अक्सर बड़े भाई-बहन अपने नवागत भाई या बहन को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं। वह मन ही मन खुद को उपेक्षित और अवांछित भी समझ सकते हैं। यहां परिवार और परवरिश दोनों की अहम भूमिका होती है। घर के बड़े हंसी-मजाक में भी कभी बच्चे को यह अहसास ना कराएं कि नए बच्चे के आगमन से उसकी अहमियत कम हो जाएगी। इस उम्र में बैठा उनका यह डर ग्रंथि बनकर रिश्तों की डोर कमजोर कर सकता है। भाई और बहन के बीच स्वस्थ रिश्ते की बुनियाद रखने की जिम्मेदारी माता-पिता की होती है।
खासकर भाई अगर बड़ा है तो उसे नई बहन के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा दें कि यह नन्ही जान उसके साथ खेलने और पढ़ने के लिए लाई गई है। उसके अकेलेपन को दूर करने के लिए उसे भेजा गया है। जैसे-जैसे वह बड़ी होगी उसकी खुशियों का सबब बनेगी।
अगर बहन बड़ी है तो उसे यह अहसास दिलाएं कि छोटा भाई आने से उसको मिलने वाले प्यार में कमी नहीं होगी ना व्यवहार में बदलाव आएगा। लड़कियां यूं भी मानसिक रूप से इस मामले में मजबूत होती है उन्हें बस इतना भर बताया जाना चाहिए कि इस छोटे प्राणी को अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत है।
भाई-बहन के रिश्ते के मनोविज्ञान का बस इतना ही सच है कि उन्हें स्वस्थ वातावरण में बिना किसी भेदभाव के खिलने-खेलने-पनपने का अवसर दीजिए। प्यार की सौगात से तो ईश्वर ने स्वयं उन्हें नवाजा है आप उन्हें उस प्यार को महकाने की खुशनुमा भावनात्मक बगिया दीजिए।