भक्ति आंदोलन और रविदास पर टिप्पणी
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।भक्ति आंदोलन- सूफी आंदोलन की अपेक्षा अधिक प्राचीन है। उपनिषदों में इसकी दार्शनिक अवधारणा का पूर्ण प्रतिपादन किया गया है। भक्ति आंदोलन हिन्दुओं का सुधारवादी हिन्दुओं का सुधारवादी आंदोलन था। इसमें ईश्वर के प्रति असीम भक्ति, ईश्वर की एकता, भाई चारा, सभी धर्मों की समानता तथा जाति व कर्मकांडों की भर्त्सना की गई है। वास्तव में भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण भारत में सातवी से बारहवीं शताब्दी के मध्य हुआ, जिसका उद्देश्य नयनार तथा अलवार संतों के बीच मतभेद को समाप्त करना था। इस आंदोलन के प्रथम प्रचारक शंकराचार्य माने जाते हैं।
रविदास_
ये रामानंद के अति प्रसिद्ध शिष्यों में से थे। जे जन्म से चमार थे लेकिन इनका धार्मिक जीवन जितना गूढ था, उतना ही उन्नत और पवित्र था। सिक्खों के गुरू ग्रंथ साहिब में संग्रहीत रविदास के तीस से अधिक भजन हैं। रविदास के अनुसरार मानव सेवा ही जीवन में धर्म की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति का माध्यम है।
भक्ति आंदोलन
हिंदू धर्म में "भक्ति आंदोलन" शब्द उन विश्वासों और गतिविधियों को संदर्भित करता है जो मध्य युग के दौरान एक या एक से अधिक देवताओं के प्रति प्रेम और भक्ति के विषयों के आसपास विकसित हुए थे। अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए भक्ति आंदोलन ने जाति व्यवस्था के खिलाफ प्रचार करने के लिए स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल किया।
रविदास
15वीं से 16वीं शताब्दी ईस्वी में, रविदास, जिन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है, भारत के एक रहस्यवादी कवि-संत थे। वह एक कवि, एक समाज सुधारक और एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे, जो उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के समकालीन राज्यों में एक गुरु (शिक्षक) के रूप में प्रतिष्ठित थे।
रविदास जयंती के दिन रविदास जी का जन्म हुआ था। यह सर्वविदित है कि रविदास जी जाति व्यवस्था को समाप्त करने का काम करते हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने भक्ति आंदोलन में योगदान दिया है और कबीर जी के करीबी दोस्त और छात्र होने के लिए जाने जाते हैं। मीराबाई नाम की उनकी एक शिष्या थी।
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