भक्ति काल की पृष्ठभूमि प्रमुख प्रक्रिया धाराएं एवं विशेषताओं का वर्णन करें 300 शब्दों में
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भक्ति काल महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आदिकाल के बाद आये इस युग को 'पूर्व मध्यकाल' भी कहा जाता है। इसकी समयावधि 1375 वि.सं से 1700 वि.सं तक की मानी जाती है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है जिसको जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, श्यामसुन्दर दास ने स्वर्णयुग, आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक जागरण कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी में प्राप्त होती हैं।
दक्षिण में आलवार बंधु नाम से कई प्रख्यात भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें रामानुजाचार्य प्रमुख थे। रामानुजाचार्य की परंपरा में रामानंद हुए। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। वे उस समय के सबसे बड़े आचार्य थे। उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में ऊंच-नीच का भेद तोड़ दिया। सभी जातियों के अधिकारी व्यक्तियों को आपने शिष्य बनाया। उस समय का सूत्र हो गयाः
जाति-पांति पूछे नहिं कोई।
हरि को भजै सो हरि का होई।।
रामानंद ने विष्णु के अवतार राम की उपासना पर बल दिया। रामानंद ने और उनकी शिष्य-मंडली ने दक्षिण की भक्तिगंगा का उत्तर में प्रवाह किया। समस्त उत्तर-भारत इस पुण्य-प्रवाह में बहने लगा। भारत भर में उस समय पहुंचे हुए संत और महात्मा भक्तों का आविर्भाव हुआ।
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भक्तिकाल की समय-सीमा से परिचित हो सकेंगे;
भक्तिकाल की राजनीतिक पृष्ठभूमि को जान सकेंगे;
भक्तिकाल की आर्थिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि का विवेचन कर सकेंगे;
भक्तिकाल की धार्मिक स्थिति की चर्चा कर सकेंगे;
भक्तिकाल की दार्शनिक पृष्ठभूमि का परिचय दे सकेंगे;
हिन्दी साहित्य में भक्ति के उदय की व्याख्या कर सकेंगे;
दक्षिण भारत में भक्ति-आंदोलन के उदय के कारण और भक्ति-आंदोलन के अखिल भारतीय स्वरूप का विश्लेषण कर सकेंगे।
ऐतिहासिक दृष्टि से भक्ति-आंदोलन के विकास को दो चरणों में बाँटा जा सकता है। पहले चरण के अंतर्गत दक्षिण भारत का भक्ति-आंदोलन आता है। इस आंदोलन का काल छठी शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक का है। दूसरे चरण में उत्तर भारत का भक्ति आंदोलन आता है। इसकी समय-सीमा तेरहवीं शताब्दी के बाद से सत्रहवीं शताब्दी तक है। इसी चरण में उत्तर भारत इस्लाम के संपर्क में आया। हिंदी साहित्य के भक्तिकाल का संबंध उत्तरी भारत के भक्ति-आंदोलन से है। आचार्य’ रामचन्द्र शुक्ल ने भक्तिकाल की समय सीमा सन् 1318-1643 ई. मानी है। आगे के इतिहासकारों ने भी इसी समय-सीमा को स्वीकारा है। भक्तिकाल के काल विभाजन की विस्तृत जानकारी हम इस पाठ्यक्रम के खंड-1 की पहली इकाई में आपको दे चुके हैं।