भक्ति काल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है कृष्ण काव्य धारा व राम काव्य धारा के दो दो कवियों के नाम लिखिए
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हिन्दी साहित्य के चार कालों में केवल भक्तिकाल ही अपने सामाजिक, नैतिक साहित्यिक मान्यताओं के कारण स्वर्णकाल कहा जा सकता है। भक्तिकाल अथवा पूर्व मध्यकाल हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण काल है जिसे ‘स्वर्णयुग’ विशेषण से विभूषित किया जाता है. इस काल की समय सीमा विद्वानों द्वारा संवत 1375 से 1700 तक मान्य है.राजनैतिक, सामाजिक,धार्मिक,दार्शनिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अंतर्विरोधों से परिपूर्ण होते हुए भी इस काल में भक्ति की ऐसी धारा प्रवाहित हुयी कि विद्वानों ने एकमत से इसे भक्ति काल कहा.
Explanation:
रामभक्ति धारा के प्रतिनिधि कवि हैं-गोस्वामी तुलसीदास
कृष्णभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि सूरदास जी हैं?
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भक्तिकाल को स्वर्णयुग भी कहा जाता है जो समय 1375 से 1700 तक मान्य था।
- सामजिक और साहित्यिक दृष्टिकोण होने के बावजूद भी भक्तिकाल की ऐसी लहर उमरी जिससे इस काल को सभी बविद्यावानो ने भक्तिकाल से सम्बोधित कर दिए। इसे बाकी सभी कालों से तुलना में रखा जाता है और फिर भी सबसे ऊपर भक्तिकाल ही आता है। इसलिए इसे स्वर्णयुग कहा जाता है।
- राम कवी धरा के कई कवी थे जिन्होंने ने भगवन विष्णु के अवतार श्री राम को ही अपना गुरु माना। राम भक्ति में सबसे प्रसिद्ध तुलसीदास जी को माना जाता है। रामनन्द भी रामभक्ति में प्रसिद्द है और लोग उन्हें रामानंद के नाम से पुकारते है।
- श्री कृष्णा की लीलाओं का वर्णन करने वाले सबसे प्रसिद्ध कवी थे सूरदास जी। उन्होंने श्री कृष्णा की कई रचनायें लिखी है। अग्रदास भी श्री कृष्णा भख ही थे और उनकी ही कविताएं लिखा करते थे।
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