भक्ति काल में कबीर दास को समाज सुधारक कहा गया है। इस कथन का स्पष्टीकरण विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से दिजिए।
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Hii
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शोध सार
समाजसुधारक के रूप विख्यात संत काव्यधारा के प्रमुख कवि कबीर का नाम हिन्दी साहित्य में बडे़ आदर के साथ लिया जाता है। कबीर समाज सुधारक पहले तथा कवि बाद में है। उन्होने समाज में व्याप्त रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों पर करारा व्यंग्य किया है। उन्होने धर्म का सम्बन्ध सत्य से जोड़कर समाज में व्याप्त रूढ़िवादी परम्परा का खण्डन किया है। कबीर ने मानव जाति को सर्वश्रैष्ठ बताया है तथा कहा है कि इसमें से कोई भी ऊंचा या नीचा नहीं है। एक महान क्रान्तिकारी होने के कारण उन्होने समाज में व्याप्त अनेक कुरूतीयों व बुराईयों को दूर करने का प्रयास किया है। कबीर ने मानव जाति को एक अच्छा सन्देश दिया है। हमें उनके सन्देश को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
मुख्य शब्द
निरक्षर , ईश्वर , दार्शनिक , सद्कर्म , दौलत , विनम्रता , छिन्दयान्वेषी , उपवास आदि
हिन्दी साहित्य का इतिहास बहुत पुराना है , हिन्दी साहित्य का द्वितीय चरण भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है। भक्ति काल को सवर्णयुग के नाम से जाना जाता है। इस युग में दो धाराएं चली निर्गुणधारा और सगुणधारा। निर्गुणधारा में संत काव्य धारा व सुफी काव्य धारा शामिल थी। सगुणधारा में रामकाव्यधारा व कृष्णकाव्यधारा शामिल थी। प्रस्तुत शोध का विषय संत काव्यधारा के प्रमुख समाज सुधारक कवि कबीर दास हैं। कबीरदास का जन्म 1398 ई . में हुआ। ये जाति से जुलाहा थे और काशी में रहते थे। इनकी पत्नी का नाम लोई था। कबीर के पुत्र का नाम कमाल व पुत्री का नाम कमाली था। ये सिकन्दर लोधी के समकाली थे। इनके गुरू का नाम रामानन्द था। संत कवि कबीरदास निरक्षर थे। इनके निम्न दोहे से स्पष्ट है कि वे निरक्षर थे।
मसि कागद छूयौ नहीं कलम गहयौ नहीं हाथ।
निरक्षर होने पर भी वे एक महान् दार्शनिक थे। महान् दार्शनिक होने के कारण ही आज संत कबीर को याद किया जाता है। 1518 ई . में इनकी मृत्यु हो गई थी। कबीर कवि होने से पहले एक समाजसुधारक थे उन्होने समाज मे व्याप्त अन्धविश्वास , पाखण्ड , मूर्ति पूजा , छुआछुत , तथा हिंसा का विरोध किया है। वे सभी इंसान को एक ही ईश्वर की सन्तान मानते हैं। हिन्दू - मुस्लिम की बढ़ती खाई को पाटने का काम संत कवि कबीरदास ने ही किया था। उन्होने धर्म के नाम पर होने वाले दंगों का पूरजोर खण्डन किया है। उन्होने भगवान का निवास स्थान अपने मन में ही बताया है।
“ कस्तूरी कुण्डली बसै , मृग ढूढें बन मांहि।
एसै घटि घटि राम है , दुनियां देखे मांहि।। ” 1
कबीर कहते हैं कि हिरण कस्तूरी की खुशबू को जंगल में ढूंढता फिरता है। जबकि कस्तूरी की वह सुगन्ध उसकी अपनी नाभि में व्याप्त है। परन्तु वह जान नहीं पाता। उसी प्रकार भगवान कण कण में व्याप्त है परन्तु मनुष्य उसे तीर्थों मे ढूढ़ता फिरता है।
हिंसा का विरोध :-
संत कवि कबीरदास हिंसा का विरोध करते हैं उन्हें उन लोगो से नफरत है जो जीवों को खाते हैं।
“ बकरी पाती खात है , ताकि काढ़ी खाल।
जो नर बकरी खात है , तिनको कौन हवाल।। 2
कबीर कहते हैं कि बकरी हरी पतिंयो को खाती है फिर भी उसकी खाल उधेड़ी जाती है तब भला सोचिए जो व्यक्ति बकरी को खाता है उसका क्या होगा ?