भक्तिन किनके प्रति अवज्ञा प्रकट करती है?
जेठ-जिठौत के प्रति।
साहित्यिक बंधु के प्रति।
अस्त-व्यस्त वेश-भूषा वाले कवियों के प्रति।
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Answer: भक्तिन लेखिका के परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से विशेष परिचित है; पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, लेखिका के प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति लेखिका के सदभाव से निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन ही सहजबुद्धि विस्मित कर देने वाली है।
भक्तिन लेखिका के परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से विशेष परिचित है; पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, लेखिका के प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति लेखिका के सदभाव से निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन ही सहजबुद्धि विस्मित कर देने वाली है।वह किसी को आकार-प्रकार और वेशभूषा से स्मरण करती है और किसी को नाम के अपभ्रंश द्वारा। कवि और कविता के संबंध में उसका ज्ञान बड़ा है; पर आदर-भाव नहीं। किसी के लंबे बाल और अस्त-व्यक्त वेश-भूषा देखकर वह कह उठती है-’का ओहू कवित्त लिखे जानत हैं’ और तुरंत ही उसकी अवज्ञा प्रकट हो जाती है-तब ऊ कुच्छौ करिहैं धरिहैं ना-बस गली-गली गाउत बजाउत फिरिहैं।
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