भक्तिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि तत्कालीन समाज में स्त्रियॉं के साथ कैसा व्यवहार होता था? महादेवी जी का जीवन किस प्रकार भिन्न था? आज समाज में नारियों के साठा कैसा व्यवहार हो रहा है?
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Answer: Mahadevi Verma ka jivan parichay
महादेवी वर्मा सौंदर्य को 'सत्य प्राप्ति का साधन ' मानती हैं और उनकी सौंदर्यानुभूति प्रकृति तथा मानव जीवन दोनों की ओर आकृष्ट होती है। जहाँ वह प्रकृति के विभिन्न रूपों में विराट सौंदर्य के दर्शन करती हैं वहीं नारी के विविध रूपों का भी उन्होंने चित्रण किया है। छायावादी कवि चतुष्ठय में महादेवी वर्मा का महत्वपूर्ण स्थान है।
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भक्तिन पाठ में स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार तथा उनकी दयनीय स्थिति का वर्णन किया गया है ।
• भक्तिन लेखिका महादेवी वर्मा की सेविका थी। भक्तिन की सौतेली मां ने 5 वर्ष की उम्र में उसका बाल विवाह कर दिया तथा नौ वर्ष की उम्र में गौंना कर दिया। भक्तीन ने तीन बेटियों को जन्म दिया जिसकी वजह से उसकी सास हमेशा उसे धुतकारती रहती थी।
भक्तिन की बेटी का विवाह उसकी इच्छा के बिना एक आवारा तथा निक्कम्मे लड़के से किया जा रहा था। उसकी बेटी के मना करने पर उस लड़के ने भक्तिन की बेटी की अपने साथ एक कमरे में बंद कर दिया, जिस कारण पंचों ने जबरदस्ती उसी लड़के से उसका विवाह करा दिया।
उपुर्युक्त वृतांत उन दिनों स्त्रियों की दयनीय स्थिति दर्शाते है।
महादेवी वर्मा का जीवन इन सभी से भिन्न था।
नौ वर्ष की आयु में इनका विवाह हो गया था। परंतु इनका अध्ययन चलता रहा। 1929 ई० में इन्होंने बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहा, परंतु महात्मा गांधी के संपर्क में आने पर ये समाज-सेवा की ओर उन्मुख हो गई। 1932 ई० में इन्होंने इलाहाबाद से संस्कृत में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण कीं और प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना करके उसकी प्रधानाचार्या के रूप में कार्य करने लगीं। मासिक पत्रिका ‘चाँद’ का भी इन्होंने कुछ समय तक संपादन-कार्य किया। इनका कर्मक्षेत्र बहुमुखी रहा है। इन्हें 1952 ई० में उत्तर प्रदेश की विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। 1954 ई० में ये साहित्य अकादमी की संस्थापक सदस्या बनीं। 1960 ई० में इन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ का कुलपति बनाया गया। इनके व्यापक शैक्षिक, साहित्यिक और सामाजिक कार्यों के लिए भारत सरकार ने 1956 ई० में इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। 1983 ई० में ‘यामा’ कृति पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सन 1987 में उनकी मृत्यु हो गई।
आजकल समाज में नारियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
पहले जमाने के विपरित नारियां आज हर क्षेत्र में आगे है। वे पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैं। स्त्री शिक्षा पर कोई पाबंदी नहीं है। बाल विवाह कराने वालों को दण्ड दिया जाता है । विधवा विवाह कोई पाबंदी नहीं है। इस प्रकार आज की नारी को अपने सभी अधिकार प्राप्त है।