India Languages, asked by Thanuj772, 10 months ago

Bhaktin lat saheb tak se ladne ko kyun tayyar thi?

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Answered by Anonymous
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Explanation:

आज हम अध्ययनचर्चा में ले रहे हैं, महादेवी वर्मा का गद्य पाठ ‘भक्तिन’।

भारतीय काव्य साहित्य में छायावाद युग की जिस चतुष्ठयी यानी चार महत्वपूर्ण कवियों का इतिहास में स्वर्णिम स्थान है, उनमें महादेवी वर्मा की विशेष प्रतिष्ठा है। उन्होंने उच्चकोटि का गद्य लेखन भी किया है।  भक्तिन एक संस्मरणात्मक रेखाचित्र है।

गद्य की अनेक विधाएं हैं, जैसे कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध, जीवनी, रिपोर्ताज आदि। संस्मरण और रेखाचित्र भी गद्य की ही दो और विधाएं हैं।

तो चलिये पहले यही जान लेते हैं कि संस्मरण किसे कहते हैं?

जब हम अपनी यादों के सहारे किसी व्यक्ति के जीवन अथवा घटनाओं का वर्णन लिखते या करते हैं, तो उसे साहित्य में संस्मरण विधा के नाम से जाना जाता है।

अब जान लीजिये कि रेखाचित्र किसे कहते हैं?

मोटे तौर पर रेखाचित्र शब्द से ऐसा प्रतीत होता है, कि वह चित्रकला का एक प़क्ष होगा।

हां, वह चित्रकला का एक पक्ष तो है ही, पर हिंदी साहित्य में भी गद्य की एक विधा रेखाचित्र कहलाती है। इसमें किसी व्यक्ति अथवा घटना का वर्णन करते समय उसके शारीरिक गठन अथवा घटना के परिवेष का उसी तरह विवरण दिया जाता है, जैसे कि शब्दों से चित्र बनाया जा रहा हो। आप उस चित्रण को सुनकर ही चित्र की कल्पना करने लग जाते हैं। इसे ही हिंदी साहित्य में रेखाचित्र कहते हैं।

महादेवी वर्मा जी ने अपनी ‘भक्तिन’ रचना को, हिंदी गद्य साहित्य की इन्हीं दो विधाओं को समन्वित करते हुए लिखा है। अर्थात् इस रचना का संपूर्ण कलेवर या ढांचा तो संस्मरण का है, पर मुख्य पात्र लक्ष्मी उर्फ़ भक्तिन का विवरण रेखाचित्र शैली में है।

रेखाचित्र वाले एक अंश का उदाहरण भी जान लीजिये-

‘‘छोटे कद और दुबले शरीरवाली भक्तिन अपने पतले ओठों के कोनों में दृढ़ संकल्प और छोटी आँखों में एक विचित्र समझदारी लेकर जिस दिन पहले-पहले मेरे पास आ उपस्थित हुई थी तब से आज तक एक युग का समय बीत चुका है।’’

इसमें छोटे कद, दुबले शरीरवाली, पतले ओठों, कोनों और छोटी आँखों के प्रयोग पर ध्यान दीजिये। क्या एक चित्रकार इसके आधार पर ही अपने चित्र का खाका नहीं बना लेगा? ज़रूर बना लेगा।

सारांश

भक्तिन जिसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था, अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में लेखिका ‘महादेवी वर्मा’ की सेविका के रूप में उनकी साथिन बनी। उन्होंने ही लक्ष्मी को, उसके पहिरावे-ओढ़ावे वाले स्वरूप को देखकर एक नया नाम दे दिया था- भक्तिन।

लक्ष्मी के बाल्यकाल में ही, उस की माँ की मृत्यु हो गयी थी। सौतेली माँ ने उससे छुटकारा पाने के लिये, मात्र पाँच वर्ष की आयु में ही विवाह और नौ वर्ष की आयु में गौना कर भक्तिन को उसकी ससुराल भेज दिया था।

लक्ष्मी की तीन बेटियां थीं। बेटियों को जन्म देने के कारण ही उसे अपनी सास और जिठानियों की उपेक्षा और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। सास और जिठानियाँ तो मजे से आराम फरमाती थीं और भक्तिन तथा उसकी नन्हीं बेटियों को घर और खेतों का सारा काम करना पडता था।

गनीमत यह थी कि लक्ष्मी का पति उसे बहुत चाहता था। अपने पति के स्नेह के बल पर ही लक्ष्मी में साहस बना रहा। उसने ससुराल वालों से अलग होकर अपना खुद का घर बना लिया और उसमें पति के साथ रहने लगी थी। पर यह सुख भी उसे ज्यादा दिनों तक नसीब नहीं हुआ। अल्पायु में ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब उसके ससुराल वाले लक्ष्मी की दूसरी शादी करके, उसे उसके घर से निकालकर उसकी संपत्ति हड़पने की साजिश करने लगे। अपनी दूसरी शादी से बचने के लिये लक्ष्मी को यह उपाय सूझा कि उसने अपने अपने केश मुंडा लिए और संन्यासिनों जैसा वेष ही रख लिया।

लक्ष्मी एक अद्भुत् व्यक्तित्व वाली स्त्री है। वह स्वाभिमानी, संघर्षशील, कर्मठ और दृढ संकल्पों से भरी हुई है। यही वे अस्त्र हैं, जो एक असहाय स्त्री को ताकतवर बनाते हैं।

इन्हीं गुणों के सहारे वह पितृसत्तात्मक मान्यताओं और छल-कपट से भरे समाज में अपने और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ती है।

Answered by mayankjangde08
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Answer:

बेटियों को जन्म देने के कारण ही उसे अपनी सास और जिठानियों की उपेक्षा और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। सास और जिठानियाँ तो मजे से आराम फरमाती थीं और भक्तिन तथा उसकी नन्हीं बेटियों को घर और खेतों का सारा काम करना पडता था।

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