बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है - और कविता के शीर्षक सहर्ष स्वीकारा है में आप कैसे अंतर्विरोध पाते है। चर्चा कीजिए।
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व्याख्या निम्नलिखित है
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यद्यपि दोनों में विरोधाभास वाली स्थिति है, पर वास्तव में इनमें अंतर्विरोध है नहीं। कवि प्रिय की बहलाती सहलाती आत्मीयता को बरदाश्त भी नहीं कर पाता फिर भी उसे सहर्ष स्वीकार कर लेता है। भाव प्रवणता की मन:स्थिति में कवि है। कवि अति से उकताता है पर सहज रूप को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। अत: हम इनमें अंतर्विरोध की स्थिति नहीं पाते।
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