Bhar dete ho poem summary
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भर देते हो कविता सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" द्वारा लिखी गई है |
भर देते हो
बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से
क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो ।
मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,
कर जाते हो व्यथा-भार लघु
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;
अंधकार में मेरा रोदन
सिक्त धरा के अंचल को
करता है क्षण-क्षण-
कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण
तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,
नव प्रभात जीवन में भर देते हो ।
हिंदी के प्रसिद्ध कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित ‘भर देते हो’ कविता का सारांश इस प्रकार है...
भावार्थ — निराला जी कहते हैं कि हे प्रिय! तुम बार-बार अपने करुणा रूपी स्नेह से मेरे दुखी हृदय को प्रसन्नता से भर देते हो। तुम बार-बार मेरे निकट आते हो, मुझे दिलासा देते हो और मेरे दुखों के बोझ को हल्का करने की कोशिश करते हो। जब चारों तरफ निराशा का घोर अंधकार छा जाता है और जीवन के संताप से दुखी होकर रोने लगता हूं तब तुम उस पल मेरे आंसू पोछने के लिए मेरे सामने आ जाते हो। अंधकार रूपी उस काली रात में तुम मेरे लिये आशाओं का नया सवेरा ले आते हो।