भर जोते
"दोनों दिन
जाते, डंडे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिए
जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती।
प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो – दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों
दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम – रोम में विद्रोह भरा हुआ था।"
Answers
निम्नलिखित गद्यांश की सन्दर्भ – प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।
भर जोते "दोनों दिन जाते, डंडे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिया और उन्हें डंडे से बहुत मारा | जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती।
प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो - दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों
दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम – रोम में विद्रोह भरा हुआ था।"
सन्दर्भ – यह गद्यांश हीरा और मोती दो बैलों की कहानी से लिया गया है | यह कहानी मुंशी प्रेम चंद की कहानी है |
प्रसंग - गद्यांश में हीरा और मोती दो बैलों के दुःख के बारे में बताया गया है | बैलों दुःख सहन करके दुर्बल हो गए , उनकी आँखों में विद्रोह भरा हुआ है |
व्याख्या - बैल अपने दिल की बात एक दूसरे से कह रहे है , वह कहते है दिन भर जोते जाते है , वह डंडे खाते है | शाम को उन्हें रस्सी से बांध दिया जाता है | हल जोतते समय उन्हें डंडे से बहुत मारा जाता है | घर के मालिक की बेटी उन्हें रोटियां खिला देती है | बैल कभी ऐसे दुर्बल नहीं होते , पर उनकी आँखों में रोम-रोम विद्रोह से भरा हुआ था | वह पूछना चाहते है कि हम बिना मुख वाले प्राणियों का दोष क्या है | उनकी आँखों में बदला लेने की भावना भरी है |
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