Hindi, asked by naviarora3921, 10 months ago

Bharat ka nerman par nimandh

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Answered by Zeno3
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जैविक भारत अभियान के प्रेरणा स्रोत स्वामी ओम पूर्ण स्वतंत्र पिछले दिनों जैविक भारत को ऑपरेटिव सोसायटी के दिल्ली स्थित कार्यालय पधारे। इस अवसर पर स्तम्भकार के तौर पर मुझे के उनसे संवाद का मौका मिला। मौलिक भारत के निर्माण एवं जैविक भारत अभियान का ब्लू प्रिंट पेश करने वाले इस संवाद के प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश…..

अभिजीत सिन्हा – स्वामी जी आपका स्वागत है

स्वामी ओम पूर्ण स्वतंत्र- आपका भी इस संवाद में स्वागत है…

अभिजीत सिन्हा – स्वामी जी जैविक भारत अभियान का लक्ष्य क्या है?

स्वामी ओम पूर्ण स्वतंत्र – सन 1947 में भारत की आजादी की प्राप्ति के साथ महात्मा गांधी के स्वतंत्रता अभियान का पहला चरण पूर्ण हो गया था। वहां से भारत की आजादी का दूसरा चरण यानी भारत के नव निर्माण का मिशन आरंभ होना था लेकिन दुर्भाग्य से भारत के जन्म के साथ ही राष्ट्रपिता का निधन हो गया। इस प्रकार भारत ने एक अनाथ के रूप में वहां से अपने जीवन की यात्रा आरंभ की। पिछले इतने सारे वर्षों में स्वतंत्रता के अभियान का दूसरा चरण यानी पूर्ण आजादी का अभियान, ग्राम्य भारत के निर्माण, ग्राम्य भारत के उदय के साथ पूर्ण भारत के निर्माण का अभियान…जो 1947 के बाद आरंभ होना चाहिये था, अब तक नहीं हो सका। इस अभियान की आत्मा है किसान केन्द्रित, गांव आधारित ग्राम्य भारत की नींव के ऊपर एक भविष्य के भारत का महल निर्मित करना। यही इसका लक्ष्य है।

अभिजीत सिन्हा – तो स्वामी जी इसकी रूपरेखा क्या होगी ?

स्वामी ओम पूर्ण स्वतंत्र – भारत की आजादी के दूसरे चरण में जिसे हम ग्राम्य भारत की आजादी कहें, नए भारत के निर्माण की प्रक्रिया की पूर्णता कहें, पूर्ण स्वतंत्र भारत का अभिनव उदय कहें, इसके लिए मौलिक बात है कि भारत, जो गांवों का देश है, जिसकी आर्थिक स्थिति कृषि पर आधारित है उसकी आत्मा का उदय यानी किसान के अंदर जागृति। किसान, जो भारत का निर्माता है, उसका पालक और पोषक है, उसके जीवन और जन्म में नए भविष्य का उदय। अब प्रश्न है कि ग्रामोदय की आत्मा क्या है ? तो ग्रामोदय की आत्मा केवल आर्थिक विकास, जिसकी कोशिश हम पंचायती राज के माध्यम से वर्षों से करते आ रहे हैं, और जो जमीन के बजाय कागज पर होता रहा, तो केवल वहां से नए भारत का निर्माण नहीं होता।

इस ग्रामोदय के निर्माण की आत्मा है जैविक भारत का निर्माण। यानी जो हमारी भारतीय जीवन पद्धति है, भारतीय मूल्य है, आदिकाल से वेदों से चली आ रही भारत की संस्कृति है, उस पर आधारित भारतीय व्यक्तित्व व राष्ट्र का निर्माण।

हमारा जो ये जैविक भारत अभियान है ये उस ग्राम्य भारत की आत्मा का उदय है। यह केवल एक देशी खान-पान की आदत विकसित करना भर नहीं है बल्कि यह भारतीय जीवन पद्धति, भारतीय संस्कृति, भारतीय मूल्यों को पुनः स्थापित करके एक मौलिक और सच्चे भारत के निर्माण की प्रक्रिया है जिसका दर्शन हमारे वैदिक ऋषियों ने किया था, जिसका स्वप्न हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने देखा था।

इसी लक्ष्य को साकार करने का अभियान है जैविक भारत अभियान।

अभिजीत सिन्हा – स्वामी जी कैसा होगा वह नया भारत। उसका स्वरूप क्या होगा ?

स्वामी ओम पूर्ण स्वतंत्र – हमारी संस्कृति का आधार है आध्यात्मिकता, आध्यात्मिक मूल्य, इन पर आधारित आध्यात्मिक संस्कृति, आध्यात्मिक जीवन पद्धति। यही होगी नींव नए भारत की। भारतीय शिक्षा पद्धति, भारतीय नैतिकता, भारतीय राजनीति, भारतीय समाज निर्माण, भारतीय आर्थिक नीति, इन सब का आधार होगी भारतीय संस्कृति।

हम देखते हैं कि भारत को भौतिक और राजनीतिक रूप से तो आजादी मिली लेकिन आर्थिक आजादी के लिए हम पिछले 70 साल से संघर्षरत हैं लेकिन इन सबसे अलग, जिस तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता वो है भारत का अ-भारतीयकरण। जिस भारतीय संस्कृति को लंबी गुलामी के बावजूद कोई हिला नहीं सका था वो स्वतंत्र भारत में जड़ से उखड़ गई। हमारे बदलते हुए मूल्य, कुप्रभावित होती हुई जीवन पद्धति, हमारी मानसिक गुलामी, ये सब अ-भारतीयकरण की निशानी हैं और यही हमें सबसे बड़ा नुकसान हुआ है। फायदा जो हुआ हम उसे भौतिक तराजू में माप सकते हैं, तौल सकते हैं लेकिन इस नुकसान को किसी भौतिक तराजू से मापा नहीं जा सकता। इसकी भरपाई भी आसान नहीं है।

अतः उन शाश्वत मूल्यों की स्थापना करके भारत की मौलिकता को स्थापित करना और विश्व में भारत की एक मौलिक पहचान बनाकर भावी मानव जगत के निर्माण में मार्गदर्शक की भूमिका निभाना… ये है हमारा स्वरूप, ये है चित्र एक अभिनव भारत का।

अभिजीत सिन्हा – स्वामी जी क्या इस बाजारवादी और भौतिकतावादी समय में ऐसा संभव है ?

स्वामी ओम पूर्ण स्वतंत्र – ये संभव ही नहीं, अपरिहार्य है। ये होकर रहेगा।

इसके दो कारण हैं। पहला ये कि हम देखते हैं कि हमारी विकास की परिभाषा इतनी संकुचित हो गई है कि हमने आर्थिक विकास को ही विकास मान लिया। अर्थ, जो मनुष्य के जीवन का साधन था उसे हमने साध्य बना लिया और स्वयं मनुष्य, जो साध्य था, वह मात्र अर्थ उपार्जन का जरिया बनकर रह गया। सब कुछ उल्टा हो गया। ये नुकसान पूरी मानव जाति के लिए हुआ। इसलिए हमें विकास की परिभाषा को पुनः परिभाषित करना पड़ेगा।<ul>

दूसरा ये कि नेतृत्व की बात केवल राजनीतिक क्षेत्र तक सीमित होकर रह गई। राजनीति में जो संचालक व्यवस्था है, जिसकी जिम्मेदारी समाज में एक व्यवस्था स्थापित करना है, यही केवल नेतृत्व की परिभाषा बनकर रह गई। जबकि नेतृत्व का मतलब है जीवन का निर्माण करने वाली शक्ति, वो दृष्टि, वो दिशा।

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