bharat ke arbo ki safalta ke karno ka warnan kare
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भारत पर अरबों का आक्रमण
अपनी सफलताओं के जोश से भरे हुए अरबों ने अब सिंध पर आक्रमण करना शुरू किया। सिंध पर अरबों के आक्रमण के पीछे छिपे कारणों के विषय में विद्वानों का मानना है कि, ईराक का शासक 'अल हज्जाज' भारत की सम्पन्नता के कारण उसे जीत कर सम्पन्न बनना चाहता था। दूसरे कारण के रूप में माना जाता है कि, अरबों के कुछ जहाज़, जिन्हें सिंध के देवल बन्दरगाह पर कुछ समुद्री लुटेरों ने लूट लिया था, के बदले में ख़लीफ़ा ने सिंध के राजा दाहिर से जुर्माने की माँग की। किन्तु दाहिर ने असमर्थता जताते हुए कहा कि, उसका उन डाकुओं पर कोई नियंत्रण नहीं है। इस जवाब से ख़लीफ़ा ने क्रुद्ध होकर सिंध पर आक्रमण करने का निश्चय किया। लगभग 712 में हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने 17 वर्ष की अवस्था में सिंध के अभियान का सफल नेतृत्व किया। उसने देवल, नेरून, सिविस्तान जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण दुर्गों को अपने अधिकार में कर लिया, जहाँ से उसके हाथ ढेर सारा लूट का माल लगा। इस जीत के बाद कासिम ने सिंध, बहमनाबाद, आलोद आदि स्थानों को जीतते हुए मध्य प्रदेश की ओर प्रस्थान किया।
अरबों के भारत पर आक्रमण का परिणाम
अरब आक्रमण का भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति पर लगभग 1000 ई. तक प्रभाव रहा। प्रारम्भ में अरबियों ने कठोरता से इस्लाम धर्म को थोपने का प्रयास किया, पर तत्कालीन शासकों के विरोध के कारण उन्हें अपनी नीति बदलनी पड़ी। सिंध पर अरबों के शासन से परस्पर दोनों संस्कृतियों के मध्य प्रतिक्रिया हुई। अरबियों की मुस्लिम संस्कृति पर भारतीय संस्कृति का काफ़ी प्रभाव पड़ा। अरब वासियों ने चिकित्सा, दर्शन, नक्षत्र विज्ञान, गणित (दशमलव प्रणाली) एवं शासन प्रबंध की शिक्षा भारतीयों से ही ग्रहण की। चरक संहिता एवं पंचतंत्र ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया गया। बग़दाद के ख़लीफ़ाओं ने भारतीय विद्धानों को संरक्षण प्रदान किया। ख़लीफ़ा मंसूर के समय में अरब विद्धानों ने अपने साथ ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित 'ब्रह्मसिद्धान्त' एवं 'खण्डनखाद्य' को लेकर बग़दाद गये और अल-फ़ाजरी ने भारतीय विद्वानों के सहयोग से इन ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया। भारतीय सम्पर्क से अरब सबसे अधिक खगोल शास्त्र के क्षेत्र में प्रभावित हुए। भारतीय खगोल शास्त्र के आधार पर अरबों ने इस विषय पर अनेक पुस्तकों की रचना की, जिसमें सबसे प्रमुख अल-फ़ाजरी की किताब-उल-जिज है
अरबों ने भारत में अन्य विजित प्रदेशों की तरह धर्म पर आधारित राज्य स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। हिन्दुओं को महत्त्व के पदों पर बैठाया गया। इस्लाम धर्म ने हिन्दू धर्म के प्रति सहिष्णुता का प्रदर्शन किया। अरबों की सिंध विजय का आर्थिक क्षेत्र भी प्रभाव पड़ा। अरब से आने वाले व्यापारियों ने पश्चिम समुद्र एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में अपने प्रभाव का विस्तार किया। अतः यह स्वाभाविक था कि, भारतीय व्यापारी उस समय की राजनीतिक शक्तियों पर दबाव डालते कि, वे अरब व्यापारियों के प्रति सहानुभूति पूर्ण रुख़ अपनायें।
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