Bharat ke pratham pradhan mantri pandit jawaharlal nehru ki good nirpeksh andolan mein bhumika
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गुट निरपेक्ष आन्दोलन (Non-Aligned Movement–NAM) का विकास 20वीं सदी के मध्य में छोटे राज्यों, विशेषकर नये स्वतंत्र राज्यों, के व्यक्तिगत प्रयास से हुआ। ये राज्य अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये किसी भी महाशक्ति में सम्मिलित नहीं होना चाहते थे। महाशक्ति की अवधारणा तथा नव-साम्राज्यवाद के वर्चस्व के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा खोलने और द्वितीय विश्वयुद्ध (1945) के बाद शीतयुद्ध क्षेत्रों के इर्द-गिर्द विकसित प्रतियोगी समूहों की व्यवस्था को अस्वीकार करने के लिये 1950 के दशक में नये देशों के व्यक्तिगत प्रयासों को समन्वित करने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इस उद्देश्य से 1955 में बांडुग (इंडोनेशिया) में अफ्रीकी-एशियाई सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें छह अफ्रीकी देशों सहित 29 देशों ने भाग लिया। यह सम्मेलन बहुत सफल साबित नहीं हुआ क्योंकि अनेक देश अपनी विदेश नीतियों की साम्राज्यवाद-विरोधी बैनर तले संचालित करने के लिये तैयार नहीं थे। लेकिन इसने नये स्वतंत्र राज्यों के समक्ष उपस्थित राजनीतिक और आर्थिक असुरक्षा के भय को उजागर किया। 1950 के दशक के अंत में युगोस्लाविया ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गुट-निरपेक्ष राजनीतिक पहचान की स्थापना में रुचि प्रदर्शित की। ये प्रयास 1961 में बेलग्रेड (युगोस्लाविया) में 25 गुट-निरपेक्ष देशों के राज्याध्यक्षों के प्रथम सम्मेलन होने तक जारी रहे। यह सम्मेलन युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप टीटो की पहल पर आयोजित हुआ, जिन्होंने शस्त्रों की बढ़ती होड़ से तत्कालीन सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य युद्ध छिड़ सकने की आशंका व्यक्त की थी। बेलग्रेड सम्मेलन में भाग लेने वाले अधिकतर देश एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के थे।
सम्मेलन आयोजित करने में सक्रिय अन्य नेताओं में मिस्र के गमाल अब्दुल नसीर, भारत के जवाहरलाल नेहरू और इण्डोनेशिया के सुकर्णो प्रमुख थे।
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