Bharat ke rashtriy Aandolan Mein Pratham Vishwa Yudh ki Bhumika ka varnan Karen class 10th
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प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) प्रारंभ के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उदारवादी दल के नेतृत्व में थी। इस विश्वयुद्ध में ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, अमेरिका, इटली तथा जापान एक ओर तथा जर्मनी, आस्ट्रेलिया, हंगरी एवं तुर्की दूसरी ओर थे। यह काल मुख्यतया राष्ट्रवाद का परिपक्वता काल था। प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन की भागेदारी के प्रति राष्ट्रवादियों का प्रत्युत्तर निम्न तीन चरणों में विभक्त था-
उदारवादियों ने इस युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन ताज के प्रति निष्ठा का कार्य समझा तथा उसे पूर्ण समर्थन दिया।
उग्रवादियों, (जिनमें तिलक भी सम्मिलित थे) ने भी युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन किया क्योंकि उन्हें आशा थी कि युद्ध के पश्चात ब्रिटेन भारत में स्वशासन के संबंध में ठोस कदम उठायेगा।
जबकि क्रांतिकारियों का मानना था कि यह युद्ध ब्रिटेन के विरुद्ध आतंकतवादी गतिविधियों को संचालित करने का अच्छा अवसर है तथा उन्हें इस सुअवसर का लाभ उठाकर साम्राज्यवादी सत्ता को उखाड़ फेंकना चाहिए।
किंतु विश्व युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन कर रहे भारतीय शीघ्र ही निराश हो गये क्योंकि उन्होंने देखा कि ब्रिटेन युद्ध में अपने उपनिवेशों एवं हितों की रक्षा करने में लगा हुआ है।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियां
प्रथम विश्व युद्ध ने में अपार उत्साह का संचार किया। इस दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका में गदर पार्टी तथा यूरोप में बर्लिन कमेटी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियां संचालित की। इनके साथ ही भारतीय सैनिकों द्वारा भी कुछ छिटपुट स्थानों जैसे- सिंगापुर इत्यादि में क्रांतिकारी आतंकवादी कार्यवाइयां संपन्न की गयीं। भारत में इस अवसर को क्रांतिकारी आतंकवादियों ने एक ईश्वरीय उपहार मानकर देश को उपनिवेशी शासन से मुक्त कराने की योजना बनायी तथा ब्रिटेन के शत्रुओं-जर्मनी तथा तुर्की से आर्थिक तथा सैन्य सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया।
गदर आंदोलन
गदर आंदोलन, गदर दल द्वारा चलाया गया, जिसका गठन 1 नवंबर 1913 को संयुक्त राज्य अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को नगर में लाला हरदयाल द्वारा किया गया था। रामचंद्र, बरकतउल्ला तथा कुछ अन्य क्रांतिकारियों ने भी इसमें सहयोग किया था। सैन फ्रांसिस्को में गदर दल का मुख्यालय तथा अमेरिका के कई शहरों में इसकी शाखायें खोली गयीं। यह एक क्रांतिकारी संस्था थी, जिसने 1857 के विद्रोह की स्मृति में गदर नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। गदर दल के कार्यकर्ताओं में मुख्यतया पंजाब के किसान एवं भूतपूर्व सैनिक थे, जो रोजगार की तलाश में कनाडा एवं अमेरिका के विभिन्न भागों में बसे हुये थे। अमेरिका एवं कनाडा के विभिन्न शहरों के अतिरिक्त पश्चिमी तट में भी उनकी संख्या काफी अधिक थी। गदर दल की स्थापना के पूर्व ही यहां ब्रिटेन विरोधी क्रांतिकारी गतिविधियां प्रारम्भ हो चुकी थीं। इसमें रामदास पुरी, जी.दी. कुमार, तारकनाथ दास एवं सोहन सिंह भखना की मुख्य भूमिका थी।
1911 में लाला हरदयाल के पहुंचने पर इनमें और तेजी आ गयी। इन सभी के प्रयत्नों से 1913 में गदर दल की स्थापना की गयी। इससे पूर्व क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन हेतु बैंकूवर (कनाडा) में स्वदेशी सेवक गृह एवं सिएटल में यूनाइटेड इंडिया हाउस की स्थापना की जा चुकी थी। इन दोनों संस्थाओं का उद्देश्य भी क्रांतिकारी आतंकवाद की सहायता से भारत को विदेशी दासता में मुक्त करना था। विदेशों से ब्रिटेन विरोधी आतंकवादी गतिविधियों के संचालन में गदर दल की मुख्य भूमिका थी। इस साम्राज्यवाद विरोधी साहित्य का प्रकाशन, विदेशों में नियुक्त भारतीय सैनिकों के मध्य कार्य करना ब्रिटिश उपनिवेशों में विद्रोह प्रारम्भ करना था। गदर दल की गतिविधियों में लाला हरदयाल की भूमिका सबसे प्रमुख थी। इसके अतिरिक्त रामचन्द्र, भगवान सिंह, करतार सिंह सराबा, बरकतउल्ला तथा भाई परमानन्द भी गदर दल के प्रमुख सदस्यों में से थे। इन सभी ने भारत में स्वतंत्रता की स्थापना को अपना मुख्य लक्ष्य घोषित किया। 1913 में गदर दल की स्थापना के पश्चात् जैसे ही इसकी गतिविधियां प्रारम्भ हुयी, दो अन्य घटनाओं ने इसमें उत्प्रेरक की भूमिका निभायी। ये घटनायें र्थी-कामागाटा मारु प्रकरण एवं प्रथम विश्वयुद्ध का प्रारम्भ होना।