Bharat ki pragti ke liye shiksha Ka ek mehetvapurn nivesh h kathan ki pushti kijiye
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भारत में विकसित होने वाली बसे प्राचीन शिक्षा प्रणाली को ‘वैदिक प्रणाली’ के रूप में जाना जाता है, जिसका अंतिम लक्ष्य स्वयं का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना था। यह प्रणाली ‘गुरुकुल’ आधारित थी, जिसने गुरु और शिष्य के मध्य एक संबंध को बढ़ावा दिया और एक शिक्षक केंद्रित प्रणाली की स्थापना की। इस प्रणाली में शिष्यों को कठोर अनुशासन के अंतर्गत रखा जाता था और अपने गुरु के प्रति इनके कुछ दायित्व भी होते थे।
700 ईसा पूर्व में, तक्षशिला में विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय स्थापित किया गया था और इसके पश्चात् चौथी शताब्दी ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण हुआ। इन विश्वविद्यालयों में प्रसिद्ध भारतीय विद्वानों, जैसे- चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, चाणक्य, पतंजलि आदि ने ज्ञान प्राप्त किया और ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे- गणित, खगोल विज्ञान, भौतिकी, रसायन शास्त्र, चिकित्सा विज्ञान और शल्य चिकित्सा इत्यादि में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान गोखले, राजा राम मोहन रॉय और महात्मा गांधी जैसे कई व्यक्तियों ने भारतीयों, विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा के लिए कार्य किए। शिक्षा का स्वदेशी मॉडल महात्मा गांधी के स्वराज और स्वदेशी की अवधारणा का एक प्रमुख घटक था। स्वतंत्रता के पश्चात नेताओं द्वारा शिक्षा के महत्व को विकास की पूर्व शर्त के रूप में पूर्ण रूप से मान्यता प्रदान की गयी थी।
विगत 20 वर्षों में, भारत में शिक्षा व्यवस्था में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। साथ ही इसमें अनेक नई अवधारणाएं, जैसे- प्राथमिक शिक्षा के लिए अधिकार आधारित दृष्टिकोण; साक्षरता एवं बुनियादी शिक्षा से माध्यमिक, उच्च, तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा की ओर स्थानांतरण; माध्यमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के विस्तार हेतु प्रयास करना; उच्च शिक्षा परिदृश्य को पुनः आकार प्रदान करना आदि विकसित हुई हैं।.....
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