Bharat ko mahan banane ke liye Himalaya aur Ganga ka kya yogdan hai
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आज हिमालय से लेकर गंगा सागर तक पूरी गंगा बेसिन संकटग्रस्त है। दसियों करोड़ लोगों की जीविका, उनका जीवन तथा जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों तक के अस्तित्व पर खतरा मँडराने लगा है। गंगा की समस्या के समाधान की अब तक की कोशिशें ही उसकी बर्बादी और तबाही का सबब बनती जा रही हैं।
एक समय राजीव गाँधी ने गंगा की सफाई की योजना बड़े जोर-शोर से शुरू की थी। बीस हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद गंगा और उसकी सहायक नदियों का प्रदूषण बढ़ता ही गया। मनमोहन सिंह के समय तक गंगा सफाई के नाम पर पैंतीस हजार करोड़ रुपए विभिन्न मदों में खर्च हुए ऐसा भी कई लोग बताते हैं। उन्होंने तो गंगा को राष्ट्रीय नदी ही घोषित कर दिया था। लेकिन कुछ हुआ नहीं।
केन्द्र की नई सरकार ने भी गंगा नदी से जुड़ी समस्याओं पर काम करने का फैसला किया है। तीन-तीन मन्त्रालय इस पर सक्रिय हुए हैं। लेकिन गंगा का सवाल जितना आसान दिखता है, वैसा है नहीं। यह बहुत जटिल प्रश्न है। गहराई से विचार करने पर पता चलता है कि गंगा को निर्मल और स्वच्छ रखने के लिये देश की कृषि, उद्योग, शहरी विकास तथा पर्यावरण सम्बन्धी नीतियों में मूलभूत परिवर्तन लाने की जरूरत पड़ेगी। अभी जो बाजारवादी और काॅरपोरेटी समाधान सामने लाए जा रहे हैं। उससे पूरी गंगा बेसिन और उसके आस-पास बसे लोगों की जीविका, नदी पर उनके सामुदायिक अधिकार, खेती और उनकी बसाहट भी क्षतिग्रस्त हो जाएगी।
दरअसल, ‘गंगा को साफ करने’ या ‘क्लीन गंगा की अवधारणा ही सही नदी है। सही अवधारणा तो यह होनी चाहिए कि गंगा को या नदियों को गन्दा मत करों’ काफी हद तक शुद्धिकरण तो नदियाँ खुद करती हैं। नदी जल में बड़ी संख्या में एक कोषीय प्लैंक्टन होते हैं जो सूर्य की रोशनी में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन बनाते हैं। गन्दी चीजें सोख लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। यही नदी के स्वयं शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। गंगा में और भी विशेष गुण हैं।
वैज्ञानिकों ने हैजे के जीवाणुओं को गंगा के स्वच्छ जल में डालकर देखा तो पाया कि चार घण्टे बाद हैजे के जीवाणु नष्ट हो गए थे। अब उस गंगा को कोई साफ करने की बात करे तो इसे नासमझी ही माना जाएगा। अगर कोई समझता है कि लोगों के नहाने या कुल्ला करने से या भैंसों के गोबर करने से गंगा या कोई अन्य नदी प्रदूषित होती है तो यह हँसने की बात ही होगी।
कुछ वर्ष पहले आगरा में यमुना नदी में तैरकर नहा रही 35 भैंस वालों को पुलिस वाले पकड़कर थाने ले आए थे। भैंस वालों ने कई दिनों बाद बड़ी मुश्किल से भैसों को थाने से छुड़ाया था। यमुना में जहरीला कचरा बहाने वाले फैक्ट्रियों के मालिक या शहरी मल-जल बहाने वाले म्युनिसिपल काॅरपोरेशन के अधिकारी कभी पुलिस के निशाने पर नहीं रहे। ऐसे तो नदी के प्रदूषण के कई कारक हैं लेकिन पहले हम उनके तीन प्रमुख कारकों की चर्चा करते हैं
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