Hindi, asked by royal2004, 11 months ago

Bharat me Baal prajedari ki samasya par niband

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Answered by sam777
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भारत में बालश्रम की समस्या पर निबन्ध |  

प्रस्तावना:   देश एवं राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य के निर्माता उस देश के बच्चे होते हैं । अत: राष्ट्र, देश एवं समाज का भी दायित्व होता है कि अपनी धरोहर की अमूल्य निधि को सहेज कर रखा जाये ।

इसके लिये आवश्यक है कि बच्चों की शिक्षा, लालन-पालन, शारीरिक, मानसिक विकास, समुचित सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाये और यह उत्तरदायित्व राष्ट्र होता है, समाज का होता है, परन्तु यह एक बहुत बड़ी त्रासदी है कि भारत देश में ही अपितु समूचे विश्व में बालश्रम की समस्या विकट रूप में उभर कर आ रही है ।

चिन्तनात्मक विकास:

बालश्रम की समस्या से आज देश ही नहीं अपितु विश्व के अधिक देश ग्रस्त हैं । बालश्रम की समस्या का मूल कारण गरीबी एवं जनसंख्या वृद्धि होती है च इस दृष्टि से भारत इन दोनों समस्याओं से ग्रसित है । सभी बच्चों को अपने परिवार के सद का पेट भरने हेतु कमरतोड़ मेहनत वाले कार्यो मे झोंक दिया जाता है, जबकि उनका को शरीर और कच्ची उम्र उन कार्यो के अनुकूल नहीं होती ।

उनकी उग्र खेलने-कूदने और पकी होती है, किन्तु खतरनाक उद्योगों या कार्यो में जबरन लगा देने के कारण ऐसे बच्चे, बनने से पूर्व ही मुरझा जाते हैं । गंभीर चोट, जलने या खांसी, दमा, टी.बी जैसी अनीग् बीमारियों का शिकार होकर दम तोड़ देते हैं या फिर जिंदा लाश बनकर मौत का इन्त करते रहते हैं ।

विगत कुछ वर्षो से देश-विदेश में बालश्रम पर रोक लगाने हेतु अनेक किये जा रहे हैं । भारत में अनेक संगठनों द्वारा एथ उच्चतम न्यायालय द्वारा अनेक महल फैसले लिये गये हैं । अनेक विदेशी संगठनों द्वारा भी इस ओर अनेक प्रयास किये जा हैं । इन सब प्रयासों के बावजूद भी समस्या वैसी की वैसी बनी हुई है, बल्कि परिस्थि । और भयावह होती जा रही हैं ।

अत: इस और सार्थक एवं कड़े प्रयास अत्यन्त आवश्यक उपसंहार: बाल मजदूरी को रोकने हेतु संविधान बनने से लेकर आज तक समय पर योजनाएं बनती रही हैं । राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में इनके मानवाधिकारों की ब के लिए कई घोषणाएं की जाती हैं, लेकिन वे सभी कागजी कार्यवाही के स्तर पर हइ जाती हैं ।

प्रश्न यह उठता है कि विभिन्न संगठनों द्वारा, उच्चतम न्यायालय द्वारा किये प्रयास सफल होगे या नहीं, फिर भी इस समस्या को कम करने में शिक्षा का प्रसार, उद्योग के संगठित क्षेत्र को प्रोत्साहन, सार्वजनिक दबाव, गरीबी एवं जनसंख्या नियन्त्रण एवं इस में निर्मित कानूनों को दृढ़ता से लागू करना सहायक हो सकता है ।

”जिस देश के बच्चों का कोई भविष्य नहीं होता, उस देश का भी अपना कोई य नहीं होता ।” उपरोक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि बाल मजदूरी या बालश्रम किसी भी देश के लिए आr कही जा सकती है । यह एक सामाजिक बुराई है क्योंकि इससे न केवल बालकों का मार व शारीरिक विकास बाधित होता है बल्कि समूचे देश की प्रगति भी एकांगी हो जाती है ।

कानूनी प्रावधानों से इस सामाजिक समस्या से आखें नहीं छी जा सकती, क्योंकि यह अपने में कोई अलग मसला नहीं, अन्य समस्याओं से पैदा हुई समस्या हे । बालश्रम एक अत्यन्त र समस्या है । यह समूचे समाज में अपनी जड़ें मजबूत किये हुये है । अन्तत: यह भयंकर महामारी के रूप में उभर रही है और निदान रहित होती जा रही है । देश में बाल श्रमिकों की स्थिति दयर्न है ।

इन बच्चों के हिस्से में सूरज की रोशनी नहीं है । इनके दिन भी रातो की तरह स्याह वे बंद जगह में 15-16 घंटे काम करते हैं और फिर उन्हीं अंधेरी कोठरियो में सो जाते हैं । स को उन्हें बस सूखी रोटियां मिलती है । उनके लिए चंदा मामा नहीं हैं ।

पेड़, पौधे, तितलियों भी उन्हें कोई वास्ता नहीं । उनका वास्ता तो बस मालिक से है । एक की तरह क्रूर का आतंक है । यह भय तो अब बच्चों की नींद में भी उतर गया है । जब दूसरे बच्चे सपने देख रहे होते हैं ये जाग जाते हैं । इनकी अनथक परिश्रम करने दिनचर्या शुरू हो जाती है, जो फिर देर रात तक जारी रहती है ।

जिस उम्र में बच्चे कि कहानियां सुनते है उसमें ये मालिक की गालियां सुनते हैं । इनकी सूनी आखे और सहमे देखकर ही अहसास हो जाता है कि इनका जीवन कितना कठोर है । इनके हिस्से में स्कूल, स्लेट, कलम, किताबे, लाड-दुलार, खेलकूद कुछ नहीं है । इनका जीवन तो लगातार काम, गालियां पिटाई खाना ही है ।

5-6 साल की उम्र से लेकर 14-15 साल तक की उस के बच्चे गरीब होने का खमि भुगत रहे हैं । इन्हे दलाल दूरदराज के गावो से सब्जबाग दिखाकर कारखानों तक ले जा कई जगह मां-बाप द्वारा लिया कर्जा चुकाने के लिए बच्चे मजदूर बनते हैं ।

बच्चे अपहृत भी लाये जाते हैं । बच्चों के काम करे बिना गरीब परिवारों का गुजारा नहीं होता । पांच स होते-होते ये बच्चे कमाऊ पूत बन जाते हैं । इनके लिए गांव में रोजगार नहीं बचे । घरेलू व उद्योग नष्ट हो गये हैं । बच्चों के सामने अमानवीय स्थितियों मे काम करने के अलावा कोई ही नहीं रह गया ।

गांव से हर साल हजारों बेरोजगार बच्चे काम की तलाश मे निकलते हैं । आजादी; हमने जिस तरह की विकास नीति अपनायी है, उसने गांव के आर्थिक, सामाजिक, ढांचे को नहस कर दिया है । बड़ी-बड़ी परियोजनाओ के नाम पर लोग विस्थापित हुए हैं ।

इन्हें न मुआवजा मिला, न जमीन । परिवार के परिवार मजदूरी करने को विवश हो गये । एक सर्वेक्षण से र उभर कर सामने आया है कि जहां पर्यावरण का अत्यधिक विनाश हुआ है, वहा बाल मज सख्या भी बढ़ी है । दूसरी तरफ जिन क्षेत्रों में पर्यावरण विनाश कम हुआ है, वहाँ बाल की संख्या में भी कमी आई है ।

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