Bharat me prasasenik sudharo kao explain kero in hindi
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प्रशासनिक सुधार आयोग (Administrative Reforms Commission या ARC) एक समिति है जो भारत के लोक प्रशासन को और अधिक कारगर बनाने के लिये सुझाव देने हेतु भारत सरकार द्वारा नियुक्त की गयी है। प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ५ जनवरी १९६६ को नियुक्त किया गया था। दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग ३१ अगस्त २००५ को बनाया गया था। इसके अध्यक्ष वीरप्पा मोइली थे।
आज का राज्य प्रशासनिक राज्य है। आज प्रशासन मानव जीवन के हरेक पहलू से संबंध रखता है। नागरिक प्रशासन को एक ऐसे नैतिक एजेंट के रूप में देखता है जो उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए है एवं उसकी आकांक्षाओं और लक्ष्यों तक पहुँचने में उसकी सहायता करता है। किंतु लोगों की आवश्यकताएं तो निरंतर बदलती रहती है और प्रशासन अचल बना हुआ नहीं रह सकता है। इसे आवश्यक रूप से परिवेश के अनुसार बदलना ही है। प्रशासन में या तो स्वतः परिवर्तन हो सकता है या फिर कृत्रिम रूप से परिवर्तन लाया जा सकता है। कृत्रिम रूप से लाए गए परिवर्तनों को प्रायः 'प्रशासनिक सुधार' कहते हैं।
परिभाषाएँ
हैराल्ड ई. कैडेन- प्रशासनिक सुधार प्रतिरोध के विरूद्ध प्रशासनिक परिवर्तन का कृत्रिम अभिप्रेरण है।
आर्नी एफ. लीमन्स- प्रशासनिक सुधार यथार्थता और वांछनीयता के बीच के अंतर को पाटने के प्रयास में सरकारी तंत्रा में किया गया अभिप्रेरित परिवर्तन है।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम प्रशासनिक सुधार के निम्नलिखित अंतर-संबद्ध गुणों की पहचान कर सकते हैं।
(1) नैतिक प्रयोजनः प्रशासनिक सुधार का इस अर्थ में एक नैतिक प्रयोजन है कि इसका लक्ष्य अधिक पूर्णता और परिशुद्धता प्राप्त करने के लिए प्रशासनिक संस्थाओं की हैसियत में वृद्धि करता है।
(2) सातव्यः हम प्रशासन में दो मूल प्रकार के परिवर्तनों की पहचान कर सकते हैं। नियत परिवर्तन एवं प्रासंगिक परिवर्तन। नियत परिवर्तन का अभिप्राय संवृद्धि परिवर्तन है। संगठन में प्रासंगिक परिवर्तन सतत होते हैं। उनके क्षेत्रा बहुत व्यापक एवं विविध होते हैं और उनके लिए शासन में काफी उलट-फेर की जाती है। प्रशासनिक सुधार का यही प्रासंगिक चरित्रा होता है क्योंकि यह एक सतत क्रिया है।
(3) प्रशासनिक सुधार कृत्रिम होता हैः प्रशासनिक सुधार स्वतः परिवर्तित नहीं होता है। यह एक ऐसा परिवर्तन है जो प्रशासन की प्रभावनीयता बढ़ाने के लिए किसी बाह्य स्रोत से जान-बूझकर अभिप्रेरित कराया गया हो। जैसा कि कैडेन कहते हैं, यह परिवर्ती दशाओं के प्रति स्व-समंजनकारी संगठनात्मक अनुक्रिया नहीं है, बल्कि कृत्रिम रूप से अभिप्रेरित परिवर्तन है जो स्वाभाविक प्रशासनिक प्रक्रिया के दोषपूर्ण कार्य-संचालन को ठीक करने के लिए आवश्यक है।
(4) परिवर्तन का प्रतिरोधः परिवर्तन का प्रतिरोध एक सार्वत्रिक तथ्य है भले ही मानव शरीर हो अथवा लोक प्रशासन व्यवस्था। जब कभी कोई भी सुधार किया जाता है तब इसके विरूद्ध प्रतिरोध होता ही है। प्रशासनिक सुधार तो लगभग हमेशा ही प्रतिरोध का सामना करता है।