Bharat me sanghiye vyavastha mekendr jyada majboot hote h is kathan ka udharan dekar spasth kijiae
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भारतीय संविधान अपने स्वरूप में संघीय है। समस्त शक्तियाँ जैसे :- विधायी , कार्यपालक एवं वित्तीय केंन्द्र व राज्यों के मध्य विभाजित है। यद्यपि न्यायिक शक्तियों का बंटवारा नहीं है। संविधान में एकल न्यायिक व्यवस्था की स्थापना की गई है। जो केंद्रीय कानूनों की तरह राज्य कानूनो को भी लागू करती है। तथापि संघीय तंत्र के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए इनके मध्य अधिकतम सहयोग व सहभागिता आवश्यक है। केंन्द्र व राज्यों के बीच अनेक क्षेत्रों में तनाव देखें जाते है। जो संघात्मक शासन के लिए गंभीर चुनौती है। केन्द्र व राज्य दोनों संविधान से शक्तियां ग्रहण करते है। ये दोनों अपने - अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र है। पंरन्तु फिर भी शक्तियों के प्रयोग के दौरान कुछ तनाव उभर आते है। जिनका समुचित समाधान जरूरी है। ताकि केन्द्र व राज्य संबंध सुचारू रूप से संविधान के अनुसार क्रियाशील होते रहें।
भारत एक संघात्मक राज्य है। भारतीय संविधान के भाग -1 में भारत को ‘ राज्यों का संघ ‘ कहा गया है। किन्तु भारतीय संघवाद विद्वानों के लिए एक प्रश्न चिहन् बना हुआ है। इसका कारण यह है कि भारतीय संघ अपनी प्रकृति में अनोखा है।
भारत एक संघात्मक राज्य है। भारतीय संविधान के भाग -1 में भारत को ‘ राज्यों का संघ ‘ कहा गया है। किन्तु भारतीय संघवाद विद्वानों के लिए एक प्रश्न चिहन् बना हुआ है। इसका कारण यह है कि भारतीय संघ अपनी प्रकृति में अनोखा है।
1. संघ सूची
2. राज्य सूची
3. समवर्ती सूची
संघ सूची :- पर कानून बनाने का अधिकार संसद को है। इसमें राष्ट्रीय महत्व के विषय शामिल है। जिनकी संख्या पहले 97, लेकिन अब 100 है।
राज्य सूची पर सामान्य स्थिति में कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानसभाओ को है। इसमें क्षेत्रीय महत्व के विषय शामिल है। जिनकी संख्या पहले 66, लेकिन अब 61 है।
समवर्ती सूची में उल्लेखित विषयों में केन्द्र व राज्यों को समान रूप से कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन मतभेद की दिशा में केंद्र का कानून प्रभावी होगा। पहले 47 विषय लेकिन अब 52 विषय शामिल है। इस प्राकार शक्तियों का बटवारा किया गया है। जिस कारण केन्द्र अधिक शक्तिशाली है।
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