Bharat mein Kapda Udyog Bankar ko kin samasya ka Samna karna Pada
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अठारहवीं सदी के मध्य तक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपना बिजनेस जमा लिया था। इस अवधि में व्यापार के तब तक रह चुके केंद्रों (जैसे सूरत और हुगली) का पतन हो चुका था। इसी दौरान व्यापार के नये केंद्रों (जैसे कलकत्ता और बम्बई) का उदय हुआ।
जब एक बार ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपनी राजनैतिक प्रभुता स्थापित कर ली तो इसने व्यापार पर अपने एकाधिकार को जताना शुरु कर दिया।
कम्पनी ने कपड़ा व्यवसाय से जुड़े हुए तत्कालीन व्यापारियों और दलालों को उखाड़ना शुरु किया। इसने बुनकरों पर सीधा नियंत्रण बनाने की कोशिश की। इस काम के लिए लोगों को वेतन पर रखा गया। ऐसे लोगों को गुमाश्ता कहा जाता था। गुमाश्ता का काम था बुनकरों के काम की निगरानी करना, आने वाले माल का संग्रहण करना और कपड़े की क्वालिटी की जाँच करना।
कम्पनी यह कोशिश भी करती थी कि बुनकर किसी दूसरे ग्राहक के साथ डील न कर लें। इस काम को एडवांस के सिस्टम द्वारा पुख्ता किया जाता था। इस सिस्टम के तहत बुनकरों को कच्चे माल खरीदने के लिए कर्ज दिया जाता था। जब कोई बुनकर कर्ज ले लेता था तो फिर वह किसी अन्य व्यापारी को अपना माल नहीं बेच सकता था।
एडवांस के इस नये सिस्टम ने बुनकरों के लिए कई समस्याएँ खड़ी कर दी। पहले वे अपने खेतों पर कुछ अनाज उगाया करते थे जिससे उनके परिवार का काम चल जाता था। अब उनके पास खेती के लिए समय ही नहीं बचता था और अपनी जमीन काश्तकारों को देनी पड़ती थी।
पारंपरिक व्यापारियों के विपरीत गोमाश्ता बाहरी आदमी होता था जिसका गाँव में कोई नातेदार रिश्तेदार नहीं होता था। वह सिपाहियों और चपरासियों के साथ आता था और समय पर काम न पूरा होने की स्थिति में बुनकरों को दंड भी देता था। गोमाश्ता अक्सर हेकड़ी दिखाया करता था। गाँवों में कई बार गोमाश्ता और बुनकरों के बीच लड़ाई हो जाती थी।
एडवांस के सिस्टम के कारण कई बुनकर कर्ज के जाल में फँस गये। कर्णाटक और बंगाल के कई स्थानों पर तो बुनकर अपने गाँव छोड़कर दूसरे गाँवों में चले गये ताकि अपना करघा लगा सकें। कई बुनकरों ने एडवांस लेने से मना कर दिया, अपनी दुकान बंद कर दी और खेती करने लगे।
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