Bharat mein naukarshahi mein kaun kaun si sewaye samil h
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सद्गुरु
नौकरशाही किसी राष्ट्र के जीवन में बाधक नहीं है, जैसा कि बहुत से लोग मानते हैं। हमारी राष्ट्रीयता राजनैतिक नेताओं और चुनाव पद्धति पर टिकी हुई नहीं है, बल्कि इसकी बुनियाद देश की नौकरशाही है। हमारा देश ठीक-ठाक ढंग से चल रहा है, तो केवल इसलिए क्योंकि हमारे पास एक सुदृढ़ और सुव्यवस्थित नौकरशाही व्यवस्था है, जो एक खास तरीके से प्रशिक्षित है।
देश का प्रशासन चलाने का कार्य एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। यह उन जिम्मेदारियों से कहीं, बड़ी है जो राजनेताओं को पांच सालों के लिए मिलती है। इसलिए एक नौकरशाह के जीवन को इस तरह से सशक्त करना जरूरी हो जाता है जिससे उसका जीवन तनाव और रोगों से मुक्त रहे, ताकि राष्ट्र अपने ही भार से दबकर चरमरा न जाए।
अगर आज यह चरमरा रहा है तो इसका कारण यह है कि इसके बुनियादी ढांचे को उसकी सीमाओं से आगे खींचा जा रहा है। हमारे नौकरशाहों को हद से ज्यादा और अतर्कसंगत कार्य करने के लिए कहा जा रहा है। कानूनों को लागू करने की बजाए उनको तोड़ने-मरोड़ने के लिए उनसे कहा जा रहा है। इन वजहों से एक नौकरशाह की जिंदगी बेहद चुनौतीपूर्ण और अपेक्षाओं से भरी हो गई है।
जहां काॅरपोरेट जगत में प्रबंधन यानी मैनेजमेंट मुख्यतः एक ही दिशा में कार्य करता है वहीं सरकारी तंत्र में प्रबंधन या कहें नौकरशाही को बेहद जटिल और बहुआयामी कार्य करना पड़ता है। इंसानों और परिस्थितियों के साथ बेहद जटिल तालमेल बिठाना पड़ता है। नौकरशाहों के काम की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि यह उनसे एक बड़ी कीमत वसूल लेती है, एक व्यक्ति के तौर उन्हें बहुत कुछ गंवाना पड़ सकता है, अगर वह अपने आप को आंतरिक रूप से सशक्त नहीं करें। उन्हें अपने भीतरी हालात को ऐसे संभालना होगा कि किसी भी प्रकार के बाहरी झंझावातों का असर उनको हिला नहीं सके।
मेरी यह कोशिश है कि इस नौकरशाही को बिल्कुल सतही तौर पर न देखा जाए बल्कि इसे एक ऐसे साधन या कहें डोर के रूप में देखा जाए जिसने पूरे राष्ट्र को एक साथ बांध रखा है। यह डोर तभी मजबूत हो सकती है कि जब हरेक नौकरशाह को आंतरिक संतुलन और मजबूती के एक निश्चित स्तर तक लाया जाए।