Bharat mein Shiksha ka Prasar
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भारत में शिक्षा का प्रसार
(Bharat mein Shiksha ka Prasar)
शिक्षा शब्द जिस गुरुता को प्रगट करता है उसका महत्व अपरिमेय है। शिक्षा द्वारा मानव मन और वृद्धि का स्वाभाविक विकास होता है। आज के युग में इस किसी परिभाषा विशेष में बांधने का प्रयत्न चांद-तारों तक पहुंच सके। आज शिक्षा का रूप भी कुछ अजीब और अस्पष्ट है। आध्यात्मवाद से पलायनोन्मुख या अदासीन शिक्षा-शिक्षा नहीं हो सकती। एतदर्थ आज कोई शिक्षा की परिभाषा नहीं हो पाती।
शिक्षा क्या है, यदि इस विषय पर पुस्तकीय ज्ञान से दूर हटकर थोड़ा सोचते हैं तो लगता है जीवन में जो भी कुछ सीखते हैं वह सभी शिक्षा है। पशुओं से लेकर जीवनयापन के लिए प्रत्येक पेशे में सफलता-प्राप्ति के लिए जो कुछ करते हैं, उसे भी तो शिक्षा ही कहते हैं। किंतु क्या यह सब शिक्षा है?
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bharat mein Shiksha ka prasar
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शिक्षा शब्द जिस गुरुता को प्रगट करता है उसका महत्व अपरिमेय है। शिक्षा द्वारा मानव मन और वृद्धि का स्वाभाविक विकास होता है। आज के युग में इस किसी परिभाषा विशेष में बांधने का प्रयत्न चांद-तारों तक पहुंच सके। आज शिक्षा का रूप भी कुछ अजीब और अस्पष्ट है। आध्यात्मवाद से पलायनोन्मुख या अदासीन शिक्षा-शिक्षा नहीं हो सकती। एतदर्थ आज कोई शिक्षा की परिभाषा नहीं हो पाती।
शिक्षा क्या है, यदि इस विषय पर पुस्तकीय ज्ञान से दूर हटकर थोड़ा सोचते हैं तो लगता है जीवन में जो भी कुछ सीखते हैं वह सभी शिक्षा है। पशुओं से लेकर जीवनयापन के लिए प्रत्येक पेशे में सफलता-प्राप्ति के लिए जो कुछ करते हैं, उसे भी तो शिक्षा ही कहते हैं। किंतु क्या यह सब शिक्षा है?
शिक्षा बालक के स्वाभाविक विकास का नाम है, जो मनोवैज्ञानिक आधार पर हो। विनय शिक्षा का स्वभाव है और जिसमें निहित है सत्य, शिव, सुंदर। ‘विनय’ एन.डी.सी.आई. द्वारा कदापि नहीं लाया जा सकता। खेद तो यह है कि इस पर करोड़ों रुपए सरकार खर्च कर रही है जबकि शिक्षा का आधार मनोवैज्ञानिक माना जाता है। तब इस प्रकार शिक्षा में विनय लाना अमनोवैज्ञानिक और अस्वाभाविक क्यों नहीं माना जाता? आज सच्चे अर्थों में शिक्षा अपने उद्देश्यों से कोसों दूर है।
आज हम जिस युग में जी रहे हैं वह अनास्था, अविश्वास और अस्थिरता का युग है। मनुष्य विज्ञान अपनी उन्नति समय चुका है कि उसे दिन-रात अपनी स्थिति सुधारने की चिंता लगी रहती है। उसकी इच्छाओं का स्त्रोत रुकने वाला नहीं है। हम अपनी भावनाओं को भारत के कोने-कोने तक पहुंचा सकेंगे हममें जनतंत्रात्मक भावना का विकास होगा जो किसी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए बहुत जरूरी है।