Bharat mein Swasthya Seva sambandhit virodhabhas ki sthiti kya hai udaharan dekar spasht karo
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भारत में स्वास्थ्य सेवा के लिए निजी स्वास्थ्य क्षेत्र प्रमुख भूमिका निभाता हैं। यहाँ अधिकांश स्वास्थ्य खर्च बीमा के माध्यम से होने के बजाय रोगियों और उनके परिवारों द्वारा उनकी जेब भुगतान किया जाता हैं। इसके चलते स्वास्थ्य खर्चों पर बहुत ही असामान्य व्यय करना पड़ता हैं एवं परिणामस्वरूप किसी भी परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब हो जाती हैं। यहाँ तक की जीने का एक बुनियादी मानको को बनाये रखने में परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं।
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Explanation:
हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएँ अत्यधिक महँगी हैं जो गरीबों की पहुँच से काफी दूर हो गई हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन व आवास जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। गौरतलब है कि हमारे संविधान में इस बात का प्रावधान होते हुए भी कि नागरिकों को स्वास्थ्य व शिक्षा प्रदान करना हमारी प्राथमिकता है, हम एक राष्ट्र के रूप में इस लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण जारी है जिससे आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
भारत की स्वास्थ्य चिंताएँ
भारत संक्रामक रोगों का पसंदीदा स्थल तो है, ही साथ में गैर-संक्रामक रोगों से ग्रस्त लोगों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रत्येक वर्ष लगभग 5.8 भारतीय ह्रदय और फेफड़े से संबंधित बीमारियों के कारण काल के गाल में समा जाते हैं। प्रत्येक चार में से एक भारतीय हृदय संबंधी रोगों के कारण 70 वर्ष की आयु तक पहुँचने से पहले ही मर जाता है।
स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता में विषमता का मुद्दा भी काफी गंभीर है। शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति ज़्यादा बदतर है। इसके अलावा बड़े निजी अस्पतालों के मुकाबले सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का घनघोर अभाव है। उन राज्यों में भी जहाँ समग्र औसत में सुधार देखा गया है, उनके अनेक जनजातीय बहुल क्षेत्रों में स्थिति नाजुक बनी हुई है। निजी अस्पतालों की वज़ह से बड़े शहरों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता संतोषजनक है, लेकिन चिंताजनक पहलू यह है कि इस तक केवल संपन्न तबके की पहुँच है।
तीव्र और अनियोजित शहरीकरण के कारण शहरी निर्धन आबादी और विशेषकर झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। आबादी का यह हिस्सा सरकारी और निजी अस्पतालों के समीप रहने के बावजूद स्वास्थ्य सुविधाओं को पर्याप्त रूप में नहीं प्राप्त कर पाता है। सरकारी घोषणाओं में तो राष्ट्रीय कार्यक्रमों के तहत सभी चिकित्सा सेवाएँ सभी व्यक्ति को निःशुल्क उपलब्ध हैं और इन सेवाओं का विस्तार भी काफी व्यापक है। हालाँकि, ज़मीनी सच्चाई यही है कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधा आवश्यकताओं के विभिन्न आयामों को संबोधित करने में विफल रही है।
महँगी होती चिकित्सा सुविधाओं के कारण, आम आदमी द्वारा स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च में बेतहासा वृद्धि हुई है। एक अध्ययन के आधार पर आकलन किया गया है कि केवल इलाज पर खर्च के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में लोग निर्धनता का शिकार हो रहे हैं। ऐसा इसलिये हो रहा है क्योंकि कि समाज के जिस तबके को इन सेवाओं की आवश्यकता है, उसके लिये सरकार की ओर से पर्याप्त वित्तीय संरक्षण उपलब्ध नहीं है, और जो कुछ उपलब्ध हैं भी वह इनकी पहुँच से बाहर है।